पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

टिप्पणियाँ १०३ लौट आये, उन सभीको स्वराज्यका दिन नजदीक लानेके लिए असहयोग-कार्यक्रमको जल्दीसे-जल्दी पूरा करनेमे जुट जाना चाहिए। और तबतक हमे इन सजाओको सहना ही नही होगा बल्कि सभी उचित, न्यायपूर्ण और शान्तिपूर्ण तरीकोसे सरकारका विरोध करके खुद भी जेल जाना होगा। यह सब क्या है? मै ये टिप्पणियाँ आनन्द भवनमें बैठकर लिख रहा हूँ। मुझे अभी-अभी एक पर्चा दिखाया गया, जिसे किसानोके बीच बॉटनेके अपराध पाँच नौजवानोको सजा दी गई है। इस पर्चमे कहा गया है कि मैंने एक सालके अन्दर स्वराज्य दिलानेका विना शर्त वायदा किया है। इस बातको पढकर मुझे चोट लगी और थोडी झुंझलाहट भी हुई लेकिन यह तो ऐसी कोई आपत्तिजनक बात नहीं है। उलटे, पर्चेमे किसानोको उत्तेजित किये जानेपर भी शान्तिसे काम लेनेकी सलाह दी गई है। मजिस्ट्रेटने इन पर्चीको राजद्रोहात्मक करार देकर उन नौजवानोंसे इस बातके लिए जमानत तलव की कि वे इन पोंको नहीं बाँटगे। जमानत देनेके बदले उन्होंने जेल जाना पसन्द किया। सरकारका विरोध करनेका यह एक अच्छा और सुथरा तरीका है। इलाहाबाद जिलेके कलक्टर द्वारा जारी किया हुआ एक नोटिस भी मैने देखा जिसमे सरकारी नौकरोंको गाधी टोपी पहननेसे मना किया गया है। मैं हर एक सर- कारी कर्मचारीको सलाह देता हूँ कि वह इन सुन्दर, हलकी-फुलकी और नाकाबिले एतराज टोपियोको पहने और बरखास्त हो जाये और जरूरत पडे तो जेल भी जाये। इलाहाबादमे मुझे यह बात भी बताई गई कि सरकारके कुछ बहुत ही खैरख्वाह कर्म- चारी किसानोको धमकियां दे रहे है कि अगर उनके घरोमे चरखे पाये गये तो वे जेल भेज दिये जायेगे। अगर चरखेको रखना राजद्रोहमै शुमार किया जाये, तो उसे घरमे रखना जेल जानेका बडा ही सम्माननीय ढग हो जायेगा। जमींदार और रेयत यह सच है कि संयुक्त प्रान्तकी सरकारने लोगोको भातकित करनेके मामलेमे औचित्यकी सभी सीमाएं पार कर डाली है। लेकिन साथ ही यह भी निस्सन्देह सच है कि किसान अपनी नई मिली ताकतका इस्तेमाल कुछ बहुत समझदारीसे नहीं कर रहे है। कहा जाता है कि कई जमीदारियोमे उन्होने ज्यादतियों की है, कानूनको बालाए ताक रख दिया है, मनमानी करने लगे है और जो उनकी मर्जीके मुताविक चलनेको तैयार नहीं उसे एक मिनट भी बरदाश्त नहीं कर सकते। वे सामाजिक बहिष्कारका गलत ढगसे इस्तेमाल कर रहे है और उन्होने उसे हिंसाका एक साधन बना लिया है। यह भी पता चलता है कि उन्होने कई जगह अपने जमीदारोका पानी, नाई और धोबी तक बन्द कर दिया है और किसी भी खिदमतगारको उनके यहाँ काम करनेके लिए नहीं जाने देते। कही-कही तो उन्होने लगान देना भी बन्द कर दिया है। असहयोगसे किसान आन्दोलनको प्रेरणा और गति तो जरूर मिली, लेकिन उनका यह आन्दोलन असहयोगके पहलेसे चल रहा है और उससे स्वतन्त्र है। समय आनेपर १. इलाहाबादमें पं० मोतीलाल नेहरूका निवास स्थान ।