पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१२५

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१०४ सम्पूर्ण गाधी वाङ्मय हमे किसानोसे यह कहनेमे जरा भी हिचकिचाहट न होगी कि वे सरकारको लगान देना मुल्तवी कर दे, लेकिन असहयोगके किसी भी दौरमे हम जमीदारोको उनके लगानसे वचित करनेकी तो कोई भी बात नहीं सोचते। इसलिए किसान आन्दोलन- को किसानोकी दशा सुधारने और किसान जमीदार सम्बन्धोको बेहतर बनाने तक ही सीमित रखना चाहिए। किसानोको यह बात समझाई जानी चाहिए कि जमीदारोके साथ किये गये अपने इकरारनामोकी शर्तोका वे ईमानदारीके साथ पूरा-पूरा पालन करे, चाहे वे इकरारनामे लिखित हो या रस्मी। अगर कोई रस्मी या लिखित इकरार- नामा भी बुरा हो और उसे भग करना जरूरी ही हो जाये तो पहले जमीदारको इत्तिला देकर केवल शान्तिपूर्ण तरीकेसे ही वैसा करना उचित है, हिंसाका सहारा तो कभी नहीं लेना चाहिए। हर हालतमे जमीदारोके साथ दोस्ताना ढगसे बातचीत करके समझौतेको कोई सूरत निकालनी चाहिए। हमारा राष्ट्र दुनियाके सबसे बड़े और प्राचीनतम राष्ट्रोमे से है, इसलिए इसके जीवनमे एक साथ कई जटिल समस्याओ- का उठ खडा होना स्वाभाविक ही है। उन सभी समस्याओको सरकारको सहायता या उसके हस्तक्षेपके बिना हल करनेकी हमारी सामर्थ्यपर ही स्वराज्य प्राप्त करनेकी हमारी सामर्थ्य निर्भर करती है। अनुशासन अब वह समय आ गया है जब हमे अवश्य ही अनुशासनका पालन करना सीख लेना चाहिए। अब यह बात टाली नही जानी चाहिए। स्टेशनोपर जो प्रदर्णन किये जाते है, वे यात्रियोके लिए काफी तकलीफदेह बनते जा रहे है। मुझे बताया गया है कि जो रेल यात्री स्टेशनपर प्रदर्शन होनेके कुछ समय पहले मेरी तारीफ कर रहे थे वे ही अगले कुछ स्टेशनोपर दो-एक प्रदर्शनोके बाद मुझे कोसने लगे। मुझे उनके साथ पूरी सहानुभूति है। इलाहाबाद जाते हुए मेरे एक सह्यात्रीको भीडके कारण बड़ी तक- लीफ हुई । प्लेटफार्मपर भीड़ इस तरह टूट पड़ी कि उन्हें एक प्याली चाय भी न मिल सकी। वे जलपानके लिए बाहर तो जा ही नहीं सके। अगर उन्होने मुझे एक घवाल समझ लिया तो कोई ताज्जुब नही। इलाहावादसे लौटते हुए कानपुरके प्लेट- फार्मपर तो भीड विलकुल कावूसे बाहर हो गई। हजारो यादमी शोर मचाते, राष्ट्रीय नारे लगाते हुए मेरे डिब्बेपर टूटे पड़ रहे थे। इससे सभीको खासी असुविधा हुई। नेताओने किसी तरह भीड़को विग तो दिया, पर शोर और नारे बन्द न किये जा सके। अन्ततक गुल-गपाडा मचता ही रहा। फिर मुझसे कहा गया कि मै दरवाजेपर आकर लोगोंको दर्शन दूं । लेकिन मैंने साफ कह दिया कि जबतक गोर-गुल विलकुल थम नही जाता मैं अपनी जगहसे हिलूंगा नही। दर्शन देनेका आग्रह करनेवाले दोस्तोको इससे जरूर निराशा हुई होगी। इस सारे शोर-गुल और धक्का-मुक्कीकी खास वजह यह है कि पहलेसे सारी वाते सोच-विचारकर ठीकसे इन्तजाम नहीं किया जाता और फिर सगठनकी कमजोरी भी है। अच्छा तो यही होगा कि स्टेशनोपर प्रदर्शन कतई न किये जाये। रेलके यात्रियों को सुविधाका खयाल हमे करना ही होगा। अगर स्टेशनोपर स्वागत करना ही हो