पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१२८

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हमारे पड़ोसी १०७ जवरदस्त खतरा मानता हूँ, और इसको सुधारनेके लिए कोई भी कीमत क्यो न चुकानी पडे, मै उसके लिए हमेशा तैयार रहूँगा। इसमे अब मुझे कोई शका नही रही कि यह सरकार ईश्वरसे पराङ्मुख है। और चूंकि कुछ भले अग्रेज और हिन्दुस्तानी इसे सहयोग दे रहे है अतः यह भारतके लिए और भी ज्यादा खतरनाक हो गई है। इसके कारण इसकी जन्मजात दुराइयोपर भारतवासियोकी नजरे नहीं पड़ पाती। मेरी लड़ाई व्यक्तियोसे नही सरकार कही जानेवाली समूची प्रणालीसे है। अच्छेसे अच्छे वाइसराय भी इस प्रणालीके अन्दरतक भिदे हुए जहरको निकालनेमे कामयाब नही हो सके और विवश होकर रह गये। क्योकि जहरकी नीवपर ही तो इसका सारा महल खड़ा किया गया है। इसलिए मौजूदा तन्त्रको बदलनेपर अगर भारतकी तबाही हो, अधिकसे-अधिक तबाही हो, तो मैं उसमे भी समाधान मान लूंगा। लेकिन मैं क्या करना चाहूँगा और मैं सचमुच क्या कर सकता हूँ, ये दोनो बाते एक-दूसरेसे बिलकुल ही जुदा-जुदा है। मुझे दुखके साथ इस वातको मजूर करना पड़ता है कि अभी हमारा आन्दोलन फौजी भाइयोपर इस हदतक असर नहीं डाल सका है कि वे जरूरतके समय सरकारकी मदद करनेसे इनकार करनेकी हिम्मत कर सके। जब सारे सैनिक इस बातको समझ जायेगे कि उनकी जिन्दगी भी राष्ट्रके लिए है और हुक्म पाकर खून बहाना सैनिकके पेशेका मखौल है, तो हिन्दुस्तानकी भौतिक स्वतन्त्रताको लडाई बगैर किसी कोशिशके जीती जा चुकेगी। लेकिन आजकी हालतमे तो आम लोगोकी तरह ही हिन्दुस्तानी सैनिकके मनमे भी भय समाया हुआ है। वह फौजमे इसलिए भरती होता है क्योकि उसे गुजर-वसरका दूसरा कोई जरिया नजर ही नही माता। सरकारने एक तरह-तरहके इनाम-इकरामो द्वारा हत्याके इस पेशेको खासा लुभावना बना दिया है और फिर कुछ इस तरहकी सजाएँ तजवीज कर रखी है कि जो एक बार इसमे फंस गया वह बगैर मुसीबत उठाये निकल नहीं सकता। इसलिए मुझे ऐसा कोई भ्रम नहीं है कि अगर अफगान तुरन्त हमला कर बैठे तो सरकार हिन्दुस्तानियोकी मददसे महरूम हो जायेगी। लेकिन जब खास तौरपर चुनौती दी गई तो मैने असहयोग आन्दोलनका एक सुसगत दृष्टिकोण देशके सामने रख देना अपना कर्तव्य समझा। साथ ही देशको सावधान करना भी जरूरी हो गया था कि वह अफगानी होएसे बिलकुल न डरे। सवालका दूसरा हिस्सा, मेरी रायमै, अहिसाकी गलत धारणासे उत्पन्न हुआ है जब दूसरी ताकतें सरकारसे लडाई छेड़े तो ऐसे समय सरकारको मदद करना अहिसा- वादी असहयोगीका कर्तव्य नहीं है। अहिंसावादी असहयोगी ऐसी किसी भी लड़ाईको प्रकट या गुप्त रूपसे न तो बढावा ही देता है और न उसमे किसी तरहकी मदद ही करता है, वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपमे ऐसी लडाईमे हिस्सा नहीं लेता। यह भी उसका काम नहीं है कि वह लडाईको खत्म करनेमे सरकारको कोई मदद करे। वह तो इस सरकारको नष्ट करनेकी कोशिश कर रहा है। वह उसकी हारके लिए प्रार्थना करेगा, जो उसे करनी भी चाहिए । इसलिए जहांतक मेरे अहिंसा-धर्मका सवाल है मैं जरा भी विचलित हुए विना पूरी शान्तिके साथ, अफगानी हमलेकी कल्पना कर सकता हूँ और भारतको सुरक्षाके वारेमें भी मुझे कोई चिन्ता नहीं है। अफगानोकी भारतसे 1