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टिप्पणियाँ


लौट आयें, उन सभीको स्वराज्यका दिन नजदीक लानेके लिए असहयोग कार्यक्रमको जल्दीसे-जल्दी पूरा करनेमें जुट जाना चाहिए। और तबतक हमें इन सजाओंको सहना ही नहीं होगा बल्कि सभी उचित, न्यायपूर्ण और शान्तिपूर्ण तरीकोंसे सरकारका विरोध करके खुद भी जेल जाना होगा।

यह सब क्या है?

मैं ये टिप्पणियाँ आनन्द भवनमें[१] बैठकर लिख रहा हूँ। मुझे अभी-अभी एक पर्चा दिखाया गया, जिसे किसानोंके बीच बाँटनेके अपराधमें पांच नौजवानोंको सजा दी गई है। इस पर्चे में कहा गया है कि मैंने एक सालके अन्दर स्वराज्य दिलानेका बिना शर्त वायदा किया है। इस बातको पढ़कर मुझे चोट लगी और थोड़ी झुंझलाहट भी हुई लेकिन यह तो ऐसी कोई आपत्तिजनक बात नहीं है। उलटे, पर्चेमें किसानोंको उत्तेजित किये जानेपर भी शान्तिसे काम लेनेकी सलाह दी गई है। मजिस्ट्रेटने इन पर्चोंको राजद्रोहात्मक करार देकर उन नौजवानोंसे इस बात के लिए जमानत तलब की कि वे इन पर्चोंको नहीं बाँटेंगे। जमानत देनेके बदले उन्होंने जेल जाना पसन्द किया। सरकारका विरोध करनेका यह एक अच्छा और सुथरा तरीका है।

इलाहाबाद जिलेके कलक्टर द्वारा जारी किया हुआ एक नोटिस भी मैंने देखा जिसमें सरकारी नौकरोंको गांधी टोपी पहननेसे मना किया गया है। मैं हर एक सरकारी कर्मचारीको सलाह देता हूँ कि वह इन सुन्दर, हलकी-फुलकी और नाकाबिले एतराज टोपियोंको पहनें और बरखास्त हो जायें और जरूरत पड़े तो जेल भी जायें। इलाहाबादमें मुझे यह बात भी बताई गई कि सरकारके कुछ बहुत ही खैरख्वाह कर्मचारी किसानोंको धमकियाँ दे रहे हैं कि अगर उनके घरोंमें चरखे पाये गये तो वे जेल भेज दिये जायेंगे। अगर चरखेको रखना राजद्रोह में शुमार किया जाये, तो उसे घरमें रखना जेल जानेका बड़ा ही सम्माननीय ढंग हो जायेगा।

जमींदार और रैयत

यह सच है कि संयुक्त प्रान्तकी सरकारने लोगोंको आतंकित करनेके मामलेमें औचित्यकी सभी सीमाएँ पार कर डाली हैं। लेकिन साथ ही यह भी निस्सन्देह सच है कि किसान अपनी नई मिली ताकतका इस्तेमाल कुछ बहुत समझदारीसे नहीं कर रहे हैं। कहा जाता है कि कई जमींदारियोंमें उन्होंने ज्यादतियाँ की हैं, कानूनको बालाए ताक रख दिया है, मनमानी करने लगे हैं और जो उनकी मर्जीके मुताबिक चलनेको तैयार नहीं उसे एक मिनट भी बरदाश्त नहीं कर सकते। वे सामाजिक बहिष्कारका गलत ढंगसे इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्होंने उसे हिंसाका एक साधन बना लिया है। यह भी पता चलता है कि उन्होंने कई जगह अपने जमींदारोंका पानी, नाई और धोबी तक बन्द कर दिया है और किसी भी खिदमतगारको उनके यहाँ काम करने के लिए नहीं जाने देते। कहीं-कहीं तो उन्होंने लगान देना भी बन्द कर दिया है। असहयोगसे किसान आन्दोलनको प्रेरणा और गति तो जरूर मिली, लेकिन उनका यह आन्दोलन असहयोगके पहलेसे चल रहा है और उससे स्वतन्त्र है। समय आनेपर

  1. इलाहाबादमें पं० मोतीलाल नेहरूका निवास-स्थान।