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आठ

और सम्बन्धको भी स्पष्ट किया ।"अवज्ञा असहयोगका उग्रतम रूप है...इसकी इजाजत तभी दी जा सकती है जब सरकार इतनी भ्रष्ट हो जाये कि उसे किसी भी तरह सुधारा न जा सके।" (पृष्ठ २३१-३२)

१७ जुलाईको असहयोग समितिने बेजवाड़ामें स्वीकृत कार्यक्रम और असहयोगको सफल बनाने के लिए अधिक प्रयत्न करनेकी अपील करते हुए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया । गांधीजी, शौकत अली, डा० किचलू और खत्री इस समिति के सदस्य थे। गांधीजीको इस बातकी प्रतीति थी कि आन्दोलनोंमें सर्वाधिक धार्मिक यह आन्दोलन बड़े बलिदान और कष्ट सहनकी अपेक्षा रखता है। "तपस्वियोंके रक्तदान के बिना स्वतन्त्रता के मन्दिरका निर्माण नहीं हो सकता।" (पृष्ठ ४६०) कारावास, बार-बार गिरफ्तारियाँ और बार-बार सजाएँ--इन सबके लिए तो जनताको तैयार रहना ही था ।

गांधीजी यह बात अवश्य मानते थे कि सविनय अवज्ञा खतरनाक हो सकती है। वे मानते थे कि यदि सविनय अवज्ञा करनेवाले व्यक्ति आत्यन्तिक कष्टोंको सहन करने-के लिए तैयार हों तो ऐसी कोई चीज नहीं है जो उन्हें दबा सके। किन्तु वे यह भी मानते थे कि यह एक कठिन प्रयोग है: “हजारों मुसलमानोंको, और यों हिन्दुओं- को भी, अहिंसा अपनाने और सर्वथा अहिंसक आचरण करनेके लिए तैयार करना सचमुच एक बड़ा खतरनाक प्रयोग है, क्योंकि उनकी धार्मिक आस्था उनको परिस्थिति विशेषमें हिंसात्मक आचरण करनेकी अनुमति देती है।" (पृष्ठ ५१२) गांधीजी उन दिनों तत्काल या निकट भविष्यमें सविनय अवज्ञा प्रारम्भ करनेकी कोई सम्भावना नहीं देख पा रहे थे, क्योंकि उनकी रायमें देश बड़े पैमानेपर तदनुसार आचरण करनेके योग्य नहीं बना था ।

तिलक स्वराज्य-कोषके लिए जूनके अन्ततक एक करोड़ रुपयेकी निधि एकत्रित करनेका निश्चय हुआ था--यह काम देशने कर दिखाया। अब स्वदेशीके अंगीकार और विदेशी कपड़ेके बहिष्कारपर अधिक जोर दिया जाने लगा और इसका उद्देश्य था ऐसा वातावरण तैयार करना "जिसमें हम इतने बड़े पैमानेपर सविनय अवज्ञा शुरू करने में समर्थ हो सकेंगे जिसका विरोध कोई सरकार नहीं कर सकती।" (पृष्ठ ४८७)

१ जुलाईको गांधीजीने देशको आह्वान दिया कि १ अगस्त तक विदेशी कपड़ेका पूरा-पूरा बहिष्कार कर दिया जाना चाहिए क्योंकि "हमें स्वराज्य-मन्दिरमें प्रवेश करनेके लिए स्वदेशीकी ही जरूरत है। स्वदेशी अर्थात् विदेशी कपड़ेका बहिष्कार ।" (पृष्ठ ३५४)

जुलाईके लगभग मध्य तक गांधीजीने हाथकते स्वदेशी कपड़ोंको काममें लेनेकी प्रतिज्ञा तैयार की और तदनुसार स्वदेशी व्रत लेनेके लिए जनताको प्रेरित किया। यह वही जमाना है जब विदेशी कपड़ोंकी होली उन दिनोंका ज्वलन्त प्रदर्शन था । गांधीजीने सारे देशसे कहा कि पहली अगस्तको विदेशी कपड़ेको त्याग देनेका व्रत लिया जाये और हजारोंकी संख्या में लोगोंने स्वदेशी व्रत लिया। विदेशी वस्त्रोंकी सबसे जबरदस्त होली जलाई गई परेलकी सार्वजनिक सभामें। ३१ जुलाईके इस दिनको गांधीजीने "बम्बईके लिए पवित्र दिन" की संज्ञा दी। यह सभा दक्षिण आफ्रिकामें प्रिटोरियाकी उस सभाका स्मरण दिलाती है जिसमें भारतीयोंने "पंजीयन प्रमाणपत्रों"