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५७. भाषण : रेलवे स्टेशनपर[१]

[ २१ मई, १९२१ ][२]

स्टेशनपर आनेवालों को पैसा लेकर ही आना चाहिए। इस वर्ष हमें तीन विपत्तियों से मुक्त होना है। उसके लिए बेजवाड़ामें उपायोंकी योजना की गई है।[३] ३० जून तक यदि एक करोड़ रुपया इकट्ठा नहीं हुआ तो नाक कट जायेगी और यदि ऐसी नौबत आ गई तो मैं अवश्य कहूँगा कि हमें इस वर्ष स्वराज्य नहीं मिलेगा। स्वदेशी का चलन जारी है लेकिन तब भी देखता हूँ कि कुछ तो केवल स्वदेशी टोपी पहनकर ही स्वदेशी कहलवाना चाहते हैं। मैं अब स्पष्ट रूपसे कहता हूँ कि जो विदेशी कपड़ोंका त्याग नहीं करना चाहते उनसे मैं मिलना नहीं चाहता। जबतक खादीको प्रतिष्ठित पोशाकका दर्जा नहीं दिया जाता तबतक स्वराज्य नहीं मिलेगा। यदि यह बात सच्ची हो कि यह लड़ाई आत्मशुद्धिकी है तो खादी पहनने के बाद आप मद्य और व्यभिचारका त्याग करें, ईमानदार बनें, मालेगांव के लोगोंकी भाँति पागल न बनें, भंगी चमारको अस्पृश्य न मानें, उनकी और ब्राह्मणकी समान सेवा करें। मेरे लिए फूल न लायें; स्वराज्य के लिए पैसा लायें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ९-६-१९२१

५८. भाषण : भुसावल में

२१ मई, १९२१

महात्माजीने कहा कि मैं आपको आजके स्वागतके लिए धन्यवाद देता हूँ। उन्होंने फिर यह बतलाया कि वाइसरायसे उनकी भेंट किस प्रकार हुई। उन्होंने कहा:

मुलाकात में दोनोंने अपनी-अपनी बातें दिल खोलकर कहीं परन्तु हम लोगोंको उनसे कोई विशेष आशा नहीं करनी चाहिए। मुझे इस भेंटका कोई खेद नहीं है क्योंकि मैंने कोई आशा नहीं की थी। जनता ही स्वराज्य लेगी। कोई व्यक्ति अथवा वाइसराय हमें स्वराज्य नहीं दे सकते। स्वराज्यका अर्थ धर्म-राज्य है और मैंने जो तरीके बतलाये हैं उनसे वह शीघ्र ही मिल जायेगा। आप लोगोंको धार्मिक तथा शुद्ध हृदय होना चाहिए। शराब छोड़ देनी चाहिए और शुद्ध स्वदेशी कपड़े पहननेकी

  1. गांधीजीकी यात्राके विवरणसे उद्धृत।
  2. गांधीजीने इस तारीख को खण्डवासे भुसावलको यात्राकी और रास्ते में पड़नेवाले एक स्टेशनपर भाषण भी दिया था।
  3. संकेत बेजवाड़ा कांग्रेस प्रस्तावको भर है; देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ५०४-५।