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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कर दिया। छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष, सभी रिक्शेमें बैठते हैं। मोटर चलाना मना है; जो उचित भी है। घोड़ागाड़ीका सिर्फ वाइसराय महोदय और एक-दो अन्य अधिकारी ही इस्तेमाल कर सकते हैं; यह भी ठीक लगता है। यहाँकी सड़कें सँकरी हैं। ऊँचे पहाड़ों पर बनाई गई सड़कें सँकरी ही होती हैं। इन सड़कोंपर गाड़ियोंका आवागमन बहुत नहीं हो सकता।

लेकिन आश्चर्य तो यह है कि रिक्शा यहाँ इतनी आम सवारी हो गई है मानो गाड़ीमें जुतना हमारा सहज धर्म हो। रिक्शा ले जानेवाले भाइयोंसे मैंने पूछा, “तुम यह धन्धा क्यों करते हो?” जवाब मिला, “पेट तो भरना है न?” यह जवाब अपने में पूरा नहीं है सो मैं जानता हूँ। और फिर वे शौककी वजहसे जानवर बनते हैं, ऐसा तो कदापि नहीं कहा जा सकता। मेरी शिकायत तो यह है कि हम खुद ही मनुष्यको जानवर बनाते हैं। फिर अगर हम साम्राज्य के बैल बने हुए हैं तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात है?

रिक्शाका उपयोग सिर्फ अंग्रेज ही करते हों सो नहीं बल्कि जितने मुक्त-भावसे वे उसका उपयोग करते हैं उतने ही मुक्त भावसे हम भी करते हैं। दूसरोंको बैल बनाने में योग देकर हम स्वयं भी बैल बन गये हैं।

एक रिक्शा पीछे चार व्यक्ति होते हैं। इनमें से तीन को प्रति मास १८ रुपये और चौथेको उनका अगुआ होनेके कारण बीस रुपये मिलते हैं। रास्तेमें इतना उतार-चढ़ाव होता है कि चार व्यक्ति होनेके बावजूद वे हाँफ उठते हैं। यह भी सौभाग्य की बात है कि रिक्शेकी बनावट कुछ ऐसी होती है कि उसमें एक ही व्यक्ति बैठ सकता है।

शिमला ७,५०० फुटकी ऊँचाईपर स्थित है। यदि लोग इतनी ऊँचाईपर से चलनेवाले राजकाजका अर्थ समझ लें तो यह साम्राज्य क्या है, इसका उन्हें पता चल जाये। बम्बईके सारे व्यापारी अगर सबसे ऊपरी मंजिलपर बैठकर व्यापार करें तो ग्राहकोंका क्या हाल होगा? चौथी मंजिल लगभग ६० फुट ऊँची होगी। हिन्दुस्तानका व्यापार चलानेवाले इस सरकार रूपी व्यापारीके तीस करोड़ ग्राहकोंको साठ फुटके बदले साढ़े सात हजार फुट ऊँचे जाना पड़ता है। बम्बईका व्यापार चौथी मंजिलसे नहीं चल सकता, सो हम जानते हैं। “हिन्दुस्तानका व्यापार पाँच सौवीं मंजिलपर चलता है”। फिर अगर हिन्दुस्तान भूखा मरता है तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात है? शिमला नगरकी तलहटीमें तीन करोड़ बच्चे भूख से बिलबिलाते रहते हैं; हमें इसमें अब कुछ आश्चर्यकी बात नहीं जान पड़नी चाहिए।

“जबतक साम्राज्य और हमारे बीच पाँच सौ मंजिलका अंतर है तबतक उस अन्तरको बनाये रखनेके लिए डायरशाही को अवश्य चलना चाहिए।”

स्वराज्यका कारोबार भी अगर उसी मंजिलसे चलाया जाये तो वह स्वराज्य नहीं हो सकता।

लेकिन कोई समझदार व्यक्ति कहेगा कि मैंने ठीक-ठीक तुलना नहीं की है। भले ही सेठ ७,५०० फुटकी ऊँचाईपर रहे लेकिन वह अपने गुमाश्तेको, पटवारीको, पटेलको और मामलतदारको तो जमीनपर ही रखता है। यदि सेठ अपने खर्चसे पाँच