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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


नहीं कर सकते और बाहर भेजते हैं। आपका स्वदेशीपन तो यह है कि आप अपनी आवश्यकताओं पर दृष्टिपात करें और बम्बईका विचारतक न करें। मेरा स्वदेशाभिमान कहता है कि मुझे पहले अपने घरको, फिर शहरको और फिर प्रान्तको स्वतन्त्र बनाना चाहिए। मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि २५ चरखोंसे आप एक बड़े साम्राज्य- का मुकाबला नहीं कर सकेंगे। हम यदि कांग्रेसको मानते हों तो हमें स्वदेशी तत्त्वको अच्छी तरहसे समझ लेना चाहिए। वकीलोंने वकालत नहीं छोड़ी इसका मुझे दुःख है, लेकिन केवल वकीलोंके धार्मिक अथवा निर्भय बननेसे कोई सारा देश निर्भय अथवा धार्मिक नहीं बन जायेगा। और फिर अच्छे-अच्छे वकीलोंने तो आत्मबलिदान किया है। और अपनी कुलीनताका परिचय दिया है। अन्य वकील भी, जो इस समय अश्रद्धासे भरे हुए हैं, जिन्हें कुटुम्बके भरण-पोषणका भय सताता है वे भी भविष्य में हमारे इस कार्य में शामिल हो जायेंगे। लेकिन स्वदेशी कपड़ेके लिए तो केवल यही बात है कि जबतक देश उसे ग्रहण नहीं करता तबतक विदेशी कपड़ेका आयात बन्द नहीं होगा। मैं अपने मनको भुलावा नहीं दे सकता। अन्य किसी भी व्यक्तिकी अपेक्षा मैं अधिक भारतीयोंसे मिलता हूँ। लेकिन ३० करोड़ व्यक्तियोंके पास अभीतक मेरी आवाज नहीं पहुँची है। मिलका कपड़ा तो गरीबों के लिए है जिनतक मेरी आवाज नहीं पहुँच सकती। यदि मिलका कपड़ा केवल गरीबोंके लिए रहे तभी मिल-मालिक कुलीन बनेंगे। जिनतक मेरी आवाज पहुँचती है, उनके लिए सिवाय इसके और कोई उपाय नहीं है कि वे यहीं कपड़ा तैयार करें और उसका उपयोग करें। इसमें द्रव्य-यज्ञ अथवा होशियारीकी जरूरत नहीं है, इसके लिए हृदयगत भावनाओंकी आवश्यकता है।

मौलाना मुहम्मद अलीने कहा है कि चरखा बेचकर हमने गुलामीकी नींव रखी है। यदि गुलामीसे मुक्त होना चाहते हैं तो आप चरखा खरीदें । चरखे के बिना हिन्दु- स्तान में होनेवाले अत्याचार और दरिद्रताको मिटाना असम्भव है। इसीसे मैं कहता हूँ कि आप यह मिथ्याभिमान न करें कि २५ चरखोंसे हमारे अच्छे दिन आ गये हैं । मैं तो यहाँ किसीको भी खादी पहने हुए नहीं देखता। सिर्फ खादीकी टोपी पहनकर ही हम ५० करोड़ के व्यापारको बन्द नहीं कर सकते। आपको खादीका भार वहन करना ही होगा।

आपको अगर महीन कपड़ेकी जरूरत हो तो आप अपनी स्त्रीको तथा लड़कीको महीन कातना सिखायें। ३० वर्ष पहले तो हमारे बुजुर्ग लोग महीन कपड़ा पहनते हुए शरमाते थे। मुझे अभीतक अपनी माताकी पवित्र स्मृति है। वे अपनी बहूके लिए महीन लहँगा बनवा देती थीं; किन्तु स्वयं पहनते हुए शरमाती थीं। आप अगर हिन्दकी प्राचीन सादगीको ग्रहण नहीं करते तो आप हिन्दुस्तांनकी बारीक मलमलका उद्धार नहीं कर सकते। आप यदि ४,२०० सदस्य बनाकर सन्तोष मान लेंगे तो बिहार के भूखोंको कौन सदस्य बनायेगा? जब आप १,२०,०००की बस्ती में से ५० हजार सदस्य भरती कर लेंगे तब कुछ काम होनेकी आशा बँधेगी। आप उलटा हिसाब छोड़कर सीधा हिसाब करें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ९-६-१९२१