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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


वे उदारता, क्षमाशीलता और स्पष्टवादिता बरतते हैं। जवाब में उन्होंने लिखा कि बम्बईवाला भाषण तो खास तौरपर बहुत सोच-विचारकर दिया गया था और उसमें किसी व्यक्तिपर कोई आक्षेप नहीं किया गया था। नरम दलवालोंके बारेमें अपनी राय उन्होंने किसी व्यक्ति विशेषको लक्ष्य करके नहीं बल्कि दलके बारेमें ही प्रकट की थी। मेरी राय जाननेके लिए उन्होंने अपने भाषणकी कतरन भी साथ भेज दी। यह उस समयकी बात है जब मैं सिन्धके दौरेपर था। उस भाषणको पढ़नेका वक्त मुझे नहीं मिला और मैं उसे भूल ही गया था; लेकिन ‘रिफॉर्मर’ की झिड़कीने सारी बात याद दिला दी। अब जब मैंने लालाजी के भाषणको पढ़ा तो मुझे उसमें कुछ भी आक्षेपपूर्ण या अविनयपूर्ण नहीं लगा। बेशक भाषण लालाजीकी लड़ाकू शैली में है; और फिर वह सार्वजनिक नहीं, दल विशेष के सामने दिया हुआ भाषण है। वर्षों विदेश में रहने के कारण उन्होंने आलोचनाकी पाश्चात्य शैलीको अपना लिया है। उनका वह भाषण पाश्चात्य शैलीका बढ़िया नमूना है। उसमें अशिष्टता तो कहीं भी नहीं है। उन्होंने जो आरोप लगाये हैं वे नरमदलीय मन्त्रियोंके आचरणको देखते हुए अनुचित नहीं हैं। उनका खास आरोप यह है कि वे नौकरशाही के साथ घुल-मिल गये हैं। बड़ा संगीन आरोप उन्होंने लगाया, लेकिन साथ ही मिसालें देकर उसे साबित भी कर दिया है। नरम दलवाले चाहें तो जवाब में कह सकते हैं कि बाहरी आदमी मन्त्रियोंकी मुश्किलोंका अन्दाज नहीं लगा सकता। लेकिन यह बात तो उलटे सरकारसे दोस्ती करनेवाले बड़े नेताओंकी गलतीको ही साबित करती है। ऐसी ही गति होगी, यह बात उन्हें पहले ही मालूम हो जानी चाहिए थी; या अब उन्हें अनुभवसे सीख लेना चाहिए कि सरकारी नीतिपर कारगर नियन्त्रण हुए बिना, खाली मन्त्री बन जानेसे कोई फायदा नहीं। आज भी वैसा ही घोर दमन हो रहा है जैसा पहले होता था। मुकदमोंका नाटक करनेसे उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। दण्ड संहिताकी राजनीति से सम्बन्धित धाराएँ ही कुछ इस तरह की हैं कि असहयोग-विषयक हर भाषणको गुनाह करार दिया जा सकता है। अगर मुझपर ही राजद्रोहका आरोप लगाया जाये तो क्या मैं इनकार कर सकूंगा, कदापि नहीं। मुझे वह मानना ही होगा। वर्तमान सरकारके प्रति अश्रद्धाकी शिक्षा देना तो असहयोगीका कर्त्तव्य है। असहयोगी तो केवल जनताके रोष और उसकी अश्रद्धाको संयत ढंगसे प्रकट करनेका ही काम कर रहे हैं। लालाजीने जो कड़े आरोप लगाये हैं अगर कोई उनका सुविचारित उत्तर दे तो मुझे खुशी होगी। बाकी मेरी विनम्र रायमें लाला लाजपतरायने नाराजी या गुस्सा कहीं जाहिर नहीं किया है, बौखलाहट उसमें कहीं नहीं है। अपने भाषण के अन्तमें देशके नौजवानोंको उन्होंने जो सलाह दी है, उनका पूरा भाषण उससे मेल ही खाता है।

ईश्वरका सन्देश वाहक

मुझे एक कतरन मिली है जिसमें कहा गया है कि में ईश्वरका सन्देश वाहक हूँ, और साथ ही यह भी पूछा गया है कि क्या मुझे कोई खास इलहाम हुआ है— क्या ईश्वरने मुझे अपना कोई दिव्य सन्देश दिया है। अपनेसे सम्बन्धित चमत्कारोंके बारेमें में पहले भी लिख चुका हूँ। अब ईश्वरके दिव्य सन्देशकी जो बात मेरे बारेमें कही