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शिमला-यात्रा


स्वराज्यका कोई मतलब नहीं रह जाता। शुद्धीकरणके इस महान् आन्दोलनमें हम भगवान्‌का सहारा खोजते हैं, उसकी सहायताकी याचना करते हैं लेकिन उसीके जिन जनोंको, मानवी अधिकारोंकी सबसे अधिक जरूरत है, उन्हें उक्त अधिकार देनेसे इनकार करते हैं। स्वयं क्रूर बने रहकर दूसरोंकी क्रूरतासे अपने त्राणकी दुहाई हम प्रभुके आगे दे ही कैसे सकते हैं?

शराब-बन्दीको मैंने दूसरे नम्बरपर रखा है, और मैं ऐसा महसूस करता हूँ कि भगवान्ने बिन माँगे ही हमारे लिए यह आन्दोलन तैयार कर दिया है। इसको लेकर काफी हंगामा मच गया है और इस आन्दोलनके हिंसक रूप धारण कर लेनेका अन्देशा भी कम नहीं है। लेकिन जबतक यह सरकार शराबकी दुकानोंको खुला रखने- पर आमादा है तबतक हमें रात-दिन एक करके गलत रास्तेपर चलनेवाले अपने भाइयोंको समझाना होगा कि वे शराबसे अपना मुँह गन्दा न करें।

चरखेको तीसरे नम्बरपर रखा गया है, हालांकि मेरे तई तो वह अस्पृश्यता-निवारण और शराब-बन्दी जितना ही महत्त्वपूर्ण है। अगर हम इस वर्ष विदेशी कपड़ेका कारगर ढंगसे बहिष्कार कर सकें तो उसका मतलब यह होगा कि स्वराज्यकी स्थापना-के लिए आवश्यक लगन, अध्यवसाय, एकाग्रता, तत्परता और राष्ट्रीयताकी भावना हममें प्रचुर मात्रामें मौजूद है।

कांग्रेसके सदस्य बनाना, देशमें घर-घर चरखेके प्रचार और खादीके उत्पादन एवं वितरणके लिए अपेक्षित विशाल संगठनके लिए ही जरूरी नहीं, लोगोंके मनमें पैठे हुए इस भयको निर्मूल करनेके लिए भी जरूरी है कि कांग्रेसका सदस्य बनना सरकार की निगाह में गुनाह है।

पाँचवीं चीज है तिलक स्वराज्य-कोष। इसके द्वारा हम स्वराज्यकी आत्मा तिलक महाराजकी स्मृतिको चिरस्थायी बनाते हैं और स्वतन्त्रताकी अपनी लड़ाईके लिए धन प्राप्त करते हैं।

३० जूनतक एक करोड़ रुपया इकट्ठा करने, कांग्रेसके एक करोड़ सदस्य बनाने और बीस लाख घरोंमें चरखा पहुँचानेकी हमने प्रतिज्ञा की है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी विशाल सभामें पूरी तरहसे बहस-मुबाहसे और सोच-विचारके बाद जो कार्यक्रम निर्धारित किया गया अगर उसे समय के अन्दर पूरा न कर सके तो हम स्वराज्य के अपने ध्येयतक कदापि न पहुँच सकेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-५-१९२१