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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


परे हैं जितने कि अली भाइयों-जैसे हमारे बड़े-बड़े नेतागण, जिनके बारेमें कुछ लोगोंने अभी कुछ ही दिन पहले दुर्भावनापूर्ण प्रचार किया था। इस मामलेमें बदनामीके शिकार बननेवाले सज्जनोंने दो बड़ी-बड़ी सार्वजनिक सभाओं में हिसाब पेश किया था और कहा था कि जो भी चाहे वह उनके दफ्तर में आकर हिसाब-किताब देखकर अपनी पूरी तसल्ली कर सकता है। इस मामलेको तभी बिलकुल खत्म हुआ मान लिया गया था। लेकिन आपके पत्रमें उसका हवाला देखकर वह बहस फिर शुरू हो गई है। मुझे भय है कि इससे हमारे विरोधियोंको हमारे आन्दोलनपर पहलेसे कहीं ज्यादा जमकर कीचड़ उछालने का मौका मिल जायेगा। महोदय, आपको ठीक-ठीक पता नहीं है कि हमारे विरोधीगण आपकी उक्तियों और लेखोंको (और आपके द्वारा अपने अनुयायियोंको दी गई। चेतावनियों और झिड़कियोंको) किस तरह तोड़-मरोड़कर एक दूसरी ही शक्लमें पेश करते हैं, और कैसे वे उनमें से कुछ असम्बद्ध, अलग-थलग वाक्य इत्यादि निकालकर असहयोगियोंका मजाक बनाया करते हैं ये काम सरकार या एंग्लो-पार्टी नहीं हमारे अपने ही भाई नरम दलके लोग करते हैं; ये लोग इस समय क्रूरताको सीमाका अतिक्रमण करनेपर तुले हुए हैं। हमारे विरोधी लोग ‘हिन्द स्वराज्य’ के कुछ वाक्यों, वासनाके सम्बन्धमें आत्म-संयम विषयक आपके लेख, को लेकर, या खालसाजीके नाम आपके या जनता द्वारा हिंसाको अपनानेपर आपकी हिमालय-वासकी धमकीकी बातको लेकर अक्सर आन्दोलन और उसके अनुयायियोंका मजाक उड़ाया ही करते हैं और कराचीके सम्बन्धमें आपकी टीकाने उनके लिए और भी मसाला जुटा दिया है।

आपने गवर्नरको कराची-यात्राके समय आयोजित हड़तालका समर्थन नहीं किया है और आपने लिखा है कि वे अच्छे-अच्छे गवर्नरोंमें से हैं। महोदय, इस सम्बन्धमें मेरा कहना यह है कि हो सकता है उन्होंने बम्बई या गुजरातकी कृतज्ञता पाने लायक कोई काम किया हो या न किया हो पर सिन्धके लिए तो उन्होंने निश्चय ही ऐसा कोई काम नहीं किया कि सिन्धी लोग उनकी भूरि-भूरि प्रशंसामें आपका साथ दें। आज सिन्धमें जितना दमन चल रहा है, उसके साथ जितनी नृशंसता बरती जा रही है या लोगोंको जितना आतंकित किया जा रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। आपको अपने ऊपर पूरा संयम है, लेकिन यदि आप अपनी सिन्ध-यात्राके चन्द दिनोंमें सन्नूर, नवाबाद और थार गये होते और आपने वहाँ अपने कानोंसे पुलिस और अन्य सरकारी अफसरोंके रोंगटे खड़े कर देनेवाले अत्याचारोंकी कहानियाँ वहाँके लोगोंकी जुबानी सुनी होतीं तो आपके संयमका बाँध टूट जाता। महोदय, में आपको यकीन दिलाता हूँ कि आप उसके बाद इन गवर्नर साहबके बारेमें अपनी राय बदल देते। इन्होंके इशारोंपर वहाँ लोगोंपर इतनी मुसीबतें ढाई जा रही हैं। यही