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७०. नागरिकों द्वारा दिये गये अभिनन्दनपत्रका उत्तर[१]

२६ मई, १९२१

गांधीजीने पहले खड़े होकर भाषण न दे सकनेके लिए क्षमा माँगी और नगरपालिका द्वारा अंग्रेजीमें मानपत्र दिये जानेकी थोड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि नम्रतापूर्वक ऐसी त्रुटियोंकी ओर ध्यान दिलाना में अपना कर्त्तव्य मानता हूँ। यदि यह मानपत्र मराठी या हिन्दीमें दिया गया होता तो वह भारतके वर्तमान मानसके अधिक अनुकूल होता। अब वह समय आ गया है कि जब नगरपालिकाऍ अपनी पहलेकी सीमाओंके बाहर कदम रख रही हैं। नगरपालिकाओंने उन्हें आगे आकर मानपत्र देना शुरू कर दिया है। इस विषय में पहल बरेली नगरपालिकाने की थी। चाँदीको जो मंजूषा दी गई थी उसके विषयमें उन्होंने कहा कि अगर शोलापुरके कोई सम्पन्न सज्जन उसे खरीद लें तो अच्छा हो; क्योंकि इस तरह प्राप्त रकम तिलक स्वराज्य कोषमें दी जा सकेगी। उन्होंने कहा मुझे यह देखकर सन्तोष हुआ है कि शोलापुरकी नगरपालिका अपना कर्तव्य कर रही है। नगरपालिकाओंका काम केवल सड़कोंकी सफाई करना है यह धारणा अब समाप्त हो जानी चाहिए और इन्हें राजनीतिके क्षेत्रमें उचित भाग लेना चाहिए। अन्तमें उन्होंने भगवान्‌से प्रार्थना की कि वह शोलापुरकी नगरपालिकाको अपना कर्त्तव्य करनेकी शक्ति और साहस प्रदान करे।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २७-५-१९२१

  1. गांधीजी पण्ढरपुर से सुबह ३-३० पर शोलापुर पहुँचे थे। उस दिन नगरका सब कारोबार बन्द रहा, जुलूस निकाला गया और ९ बजे सबेरे ही नगरपालिकाने उन्हें मानपत्र भेंट किया।