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बीजापुरके अभिनन्दनपत्रोंका उत्तर


वह अपने धार्मिक और जीवनके शाश्वत सिद्धान्तोंके चिन्तन और ब्राह्मणों द्वारा संकलित ‘भगवद्गीता’, ‘महाभारत’ तथा ‘रामरक्षा’ जैसे ग्रन्थोंके अध्ययनसे हूँ। मैं अपने ब्राह्मणेतर मित्रोंसे इन बातोंपर शान्तिसे विचार करनेके लिए कहता हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा करनेपर उन्हें मेरे कथनकी सचाईपर विश्वास हो जायेगा।

मैं और अली भाई, भाइयोंकी तरह रहते हैं। और मैं हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियोंसे अपील करता हूँ कि वे इसी तरह भाई बनकर रहें। असहयोग आन्दोलन आत्मशुद्धिका आन्दोलन है। जो बुराइयाँ हमारे समाजके मर्मको खा रही हैं उनसे हमें अवश्यमेव छुटकारा पाना चाहिए। हमें देशकी बलि वेदीपर अपना जीवन बलिदान करनेके लिए तैयार रहना होगा। हमें हर कीमतपर अहिंसा अपनानी होगी। हमें पंजाब के लछमनसिंह और दलीपसिंहके प्रशंसनीय उदाहरणका अनुकरण करना होगा। यद्यपि वे इतने सशक्त थे कि महन्त नारायणदासको मार सकते थे, तथापि उन्होंने आत्मरक्षा के लिए अँगुली तक नहीं उठाई।

मुझे दुःख है कि यह जिला अकाल पीड़ित है। अतः आप इस हालत में तिलक स्वराज्य-कोषमें उदारतापूर्वक दान नहीं दे पा रहे हैं। परन्तु मुझे यह सुनकर खेद हुआ है कि पूरे जिलेमें केवल १,४०० चरखे चल रहे हैं। चरखा तो अकालके विरुद्ध बीमा ही है। कृषिपर निर्भर रहनेवाली ८७ प्रतिशत आबादीके लिए अभावकी स्थितिमें जीवन निर्वाह करनेका इसके सिवा और कोई जरिया नहीं है। इसलिए हमें हर घरमें चरखा जरूर शुरू करना चाहिए। इससे हमारे दो काम सधेंगे। स्वदेशी उद्योग पनपेगा और फलस्वरूप विदेशी वस्त्रोंका पूर्ण बहिष्कार हो जायेगा। यदि हम अहिंसाका मार्ग अपनाने और ब्राह्मण तथा अब्राह्मणोंके विवादको हल करनेके लिए कृतसंकल्प रहें, यदि हिन्दू-मुसलमान एक दूसरेके साथ भाई-भाईकी तरह प्रेमसे व्यवहार करते रहें, और यदि हर घरमें चरखा चलता रहे तो मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि इसी एक बरसके भीतर स्वराज्य स्थापित हो जायेगा।

लोकमान्य तिलकने हमें सिखाया है, स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।[१] “इस मन्त्रको साधने के लिए हमें स्कूलों या परिषदोंमें जानेकी जरूरत नहीं है। हमें स्वराज्य चाहिए और वह स्वराज्य चरखा देगा। ३० जूनसे पहले ही हमको एक करोड़ रुपया जमा करना है। मैं समझता हूँ कि लोकमान्य तिलकके नामपर एक करोड़ रुपया इकट्ठा करना कठिन काम नहीं है।

आपने मेरा जो सम्मान किया और बीजापुरकी नगरपालिका तथा यहाँके व्यापारियोंने स्वागत के लिए जो अभिनन्दनपत्र भेंट किये हैं, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। यदि नगरपालिकाएँ और व्यापारीगण अपने कर्त्तव्योंके प्रति जागरूक हैं तो वे अवश्य ही स्वराज्य हासिल करने और खिलाफत तथा पंजाबके मामलों में न्याय प्राप्त करनेके लिए हमारी ठोस मदद कर सकेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ३-६-१९२१

२०-१०

  1. “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूँगा” यह तिलकका प्रसिद्ध सिद्धान्त- वाक्य था।