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७६. गुजरातसे बाहर रहनेवाले गुजरातियोंसे

बेजवाड़ाकी मांगके उत्तर में गुजरातको न केवल अपने हिस्सेका दान देना है बल्कि उसे असमर्थ प्रान्तोंकी सहायता के लिए भी आगे आना होगा और इसीलिए मैंने गुजरातके हिस्से में दस लाख रुपये की रकम निर्धारित की है। यदि गुजरात इतने भारको वह्न नहीं करेगा तो मुझे आशंका है कि तीस जूनसे पहले-पहले हम एक करोड़ रुपया कदापि इकट्ठा नहीं कर सकते।

लेकिन गुजरातको एक तीसरा बोझ और वहन करना है। गुजरातमें कितने ही स्थानोंपर अकाल पड़ा हुआ है वहाँ भी मददकी जरूरत है। मैं इन तीनों बातों की ओर गुजरात से बाहर रहनेवाले गुजरातियों का ध्यान आकर्षित करता हूँ। वे जिस किसी प्रान्त में रहते हैं उसके प्रति उन्हें अपने फर्जको पूरा करना चाहिए इस विषय में तो कोई मतभेद ही नहीं हो सकता। लेकिन गुजरातके प्रति भी उनका उतना ही कर्त्तव्य है। गुजरात अपने हिस्सेकी दस लाख रुपयेकी रकम तभी दे सकता है जब गुजरातसे बाहर रहनेवाले गुजराती अपने मनमें निरन्तर उसका ध्यान रखें। यदि वे ऐसा करें तो गुजरात दस लाख रुपयेकी पूरी रकम दे सकेगा, इतना ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक दे सकनेकी स्थितिमें होगा।

पारसी और मुसलमान गुजरातियोंको अगर मैं गुजरातके प्रति उनके कर्त्तव्यका भान करवा सकूँ तो वे अकेले ही एक करोड़ रुपया इकट्ठा करनेमें समर्थ हैं।

मैं गुजरात के विभिन्न भागों में पड़े हुए अकालपर ज्यादा जोर देना चाहता हूँ। उड़ीसा के अकालके समय गुजरातियोंने बहुत अच्छी रकम देकर मदद की थी।[१] उस अकालको गुजरातने ही सँभाल लिया था — ऐसा कहें तो अनुचित न होगा। तब अगर गुजरातके अकालको गुजराती सँभालें तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात है?

अन्य बातोंको लेकर आजकल देशमें जो आन्दोलन हो रहा है उसके प्रति जिन लोगोंको कोई सहानुभूति नहीं है उनसे भी मैं अकाल-निवारणके लिए धन देनेकी याचना करता हूँ। वे अकाल-कोषमें दो तरहसे पैसा दे सकते हैं। एक तो तिलक स्वराज्य कोष में दान देकर और यदि वैसा करनेमें उन्हें कोई दिक्कत महसूस हो तो केवल अकाल कोष के लिए ही पैसे भेजकर। वस्तुतः देखा जाये तो तीन प्रकारसे पैसा भेजा जा सकता है: (१) तिलक स्वराज्य-कोषमें, बिना किसी शर्तके (२) तिलक स्वराज्य कोषमें, लेकिन सिर्फ अकाल-निवारण के लिए ही; यह रकम तिलक स्वराज्य कोषकी मानी जायेगी परन्तु इसका उपयोग अकालके अवसरपर ही किया जायेगा; और (३) सिर्फ अकाल कोष के लिए और तिलक स्वराज्य-कोषमें शामिल न किये जाने की शर्तके साथ।

तीसरी शर्त के अनुसार सरकारी कर्मचारी और असहयोगका विरोध करनेवाले भी मुक्तभावसे दान दे सकते हैं और देंगे, मैं ऐसी उम्मीद रखता हूँ। जो रकम हमें

  1. देखिए खण्ड १७।