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टिप्पणियाँ


प्राप्त होती है उसका पूरा-पूरा हिसाब प्रकाशित किया जाता है। सावधान मन्त्रियों और खजांचियोंके हाथमें सारा काम है। इसलिए गुजरातसे बाहर रहनेवाले गुजरातियों से मेरी प्रार्थना है कि वे तत्परतापूर्वक बिना किसी संकोचके पैसा भेजें।

दक्षिण तथा पूर्व आफ्रिका अथवा जापान और विलायतमें रहनेवाले भारतीयों को यह पत्र देरसे मिलेगा। इसलिए गुजरातमें रहनेवाले जिन लोगोंके सम्बन्धी उपर्युक्त स्थानोंमें रहते हैं उन्हें मैं सलाह देता हूँ कि वे अपने सम्बन्धियोंको इस आशयके तार दें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-५-१९२१

७७. टिप्पणियाँ

महाराष्ट्रकी यात्रा

लोकमान्य तिलक महाराजकी जन्मभूमिमें जाना — जहाँ आधुनिक कालमें वीर पुरुषोंका जन्म हुआ, जहाँ शिवाजी हो गये हैं, जहाँ रामदास और तुकारामने गाया है वहाँ जाना — मेरे लिए तो तीर्थयात्रा करनेके समान ही है। मेरा हमेशासे यह विश्वास रहा है कि महाराष्ट्र चाहे तो सब कुछ कर सकता है। लेकिन महाराष्ट्रकी अश्रद्धा मुझे हमेशा दुःखी करती रही है। जिस प्रान्तमें सबसे ज्यादा काम हो सकता है उसी प्रान्तमें सबसे कम काम हुआ है, मुझे सदा ऐसा भय रहता है। महाराष्ट्र के कार्यकर्त्ता भी ऐसा ही मानते दीख पड़ते हैं। शिमला छोड़नेके बाद मैं कालका और अम्बाला गया। वहाँसे मध्य-प्रान्तके खंडवाके लिए रवाना हुआ और बादमें भुसावल, संगमनेर और येवला गया। यह टिप्पणी कुर्डुवाडी जाते हुए रास्ते में लिख रहा हूँ। कुर्डुवाडी जाने के लिए येवलासे धोंड जाना पड़ता है और धोंडसे गाड़ी बदलनी पड़ती है। धोंड हमारी गाड़ी देरसे पहुँची और इसी कारण जिस गाड़ीमें हमें कुर्डुवाड़ी जाना था वह छूट गई। परिणामतः हमें धोंडका अनुभव भी मिला। मुझे यह एहसास हुआ कि आम जनताकी श्रद्धा सब ओर एक समान है लेकिन काम करनेवाले कम हैं। प्रबन्ध करनेकी शक्ति अल्प है, हड़बड़ी और शोर-गुलका कोई हिसाब नहीं है, लोगोंसे स्टेशन खचाखच भरा हुआ है; लेकिन अगर कामकी ओर देखें तो नहीं के बराबर। मुझे भुसावल, संगमनेर और येवलामें जिन्होंने निमन्त्रित किया था वे लोग अवश्य ही अच्छे कार्यकर्ता हैं। तथापि परिणाम अत्यन्त नगण्य दिखाई दिया।

हमारे पास शोर-गुल, जयघोष और चरणस्पर्शके लिए अब समय ही कहाँ रह गया है? यदि हमारे पास स्टेशन जानेका समय है तो क्यों न हम उसे कातनेमें लगायें? उतना समय चन्दा इकट्ठा करनेमें क्यों न बितायें? क्या हमें कांग्रेसके कम सदस्य बनाने हैं? हम दिन-रात लगातार काम करके ही जून मासतक सारा काम कर लेनेके अपने उद्देश्यमें सफल हो सकेंगे। दो महीने बीत गये लेकिन हम