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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अभीतक दो-तिहाई कार्य भी पूरा नहीं कर पाये हैं। — आधा काम भी खत्म नहीं हुआ है।

यदि हम तीस जूनतक कार्य पूरा नहीं कर पाये तो यह माना जायेगा कि हमारी स्वराज्य प्राप्त करनेकी शक्ति अथवा इच्छा कम है।

भुसावल और संगमनेरमें सामान्य तौरपर चन्दा ठीक ही इकट्ठा किया गया है। लेकिन मुझे कहना चाहिए कि येवलामें तो नहींके बराबर चन्दा मिला। येवलामें बहुत पैसा है। वहाँ दो सौ वर्षसे बसे हुए गुजराती व्यापारी हैं तथापि येवलामें तिलक स्वराज्य कोषके लिए सबसे कम पैसे मिले हैं। यह ठीक है कि येवलाके एक ही सज्जनने राष्ट्रीय स्कूलके लिए बीस हजार रुपये दिये। यह रकम दिये जानेकी बात तो बहुत दिनोंसे चल रही थी। जिन सज्जनने यह रकम दी है वे अपनी दान-शीलताके लिए प्रसिद्ध हैं। तिलक स्वराज्य-कोषके लिए तो जनतासे पैसा इकट्ठा करना था। उसमें स्त्री-पुरुष दोनोंकी ओरसे कुल मिलाकर तीन सौ रुपया ही इकट्ठा हुआ होगा जब कि येवलाके पास एक छोटेसे गाँवने हमारे वहाँसे गुजरनेके कारण तीन सौकी रकम दी।

धर्मसंकट

येवलामें मेरे ऊपर भारी धर्मसंकट आ पड़ा। मुझे वहाँ बीस हजार रुपयेकी रकम ग्रहण करनेके लिए खास तौरसे बुलाया गया था, राष्ट्रीय स्कूलका उद्घाटन भी मुझे ही करना था। हम मोटर द्वारा रातके दस बजे येवला पहुँचे। सार्वजनिक सभा रातके एक बजे हुई! मैं बहुत ज्यादा थका हुआ था। सारे दिन मोटरोंकी यात्रा के बाद यह रतजगा था। इस सभामें मैंने राष्ट्रीय स्कूलकी बात की और इसी सभामें मैंने सुना कि इस स्कूलमें इस वर्ष भी अंग्रेजी सिखाई जायेगी। ऐसे स्कूलका उद्घाटन करके मुझे खुशी तो नहीं होती तथापि अंग्रेजी शिक्षाके सम्बन्ध में अपने उद्गार व्यक्त करनेके बाद स्कूलका उद्घाटन करते हुए मैंने दो शब्द कहे। किसी तरह मैं इस कड़वे घूँटको चुपचाप पी गया। दूसरा दिन मेरे मौनका पवित्र दिन था तथापि मैंने अपना मौन रखते हुए ही स्कूलके उद्घाटनके लिए आनेकी स्वीकृति दे दी थी। इतनेमें मुझे खबर मिली कि इसमें तो अस्पृश्योंका प्रवेश निषिद्ध है। इस वर्ष मैंने अनेक स्कूलोंका उद्घाटन किया था लेकिन किसी ऐसे स्कूलका उद्घाटन नहीं किया था। मुझे विवश होकर व्यवस्थापकोंसे कहना पड़ा कि मैं ऐसे स्कूलका उद्घाटन करनेके लिए नहीं जा सकता और मैं अन्तमें नहीं गया। मुझपर ऐसा ही संकट कराची में स्वदेशी भण्डारका उद्घाटन करते समय आ पड़ा था। उस भण्डारमें सब तरहका माल था इसीसे मैंने उसका उद्घाटन करनेसे इनकार कर दिया था। जो-जो कार्य असहयोगके विरुद्ध हैं अथवा जो मेरे अपने निश्चित विचारोंके विरुद्ध हों उन कार्यों में भाग लेनेके लिए मुझसे नहीं कहना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-५-१९२१