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७८. भाषण : बम्बईको सार्वजनिक सभामें[१]

२९ मई, १९२१

महात्मा गांधीने भाषणके आरम्भमें कहा :

मुझे अत्यन्त खेद है कि आप महानुभावोंको चार बजेसे अबतक यहाँ बैठना पड़ा, परन्तु इसमें दोष मेरा नहीं है। मुझे ७-३० बजे शामका ही समय दिया गया था। मेरा सम्पूर्ण समय आपके ही लिए है और मैं उसमें से अपने लिए कुछ नहीं रखता।

सज्जनो, अब इस देशमें सभाएँ करनेका समय नहीं रहा। अब तो ठोस काम कर दिखानेका समय आ पहुँचा है। आप लोगोंको मालम होगा कि मैं शिमलेमें ६ दिनतक रहा और मैंने माननीय वाइसराय महोदय लॉर्ड रीडिंगसे मुलाकात भी की; परन्तु मैं वहाँ कुछ लेनेकी आशासे बिलकुल नहीं गया था। श्री पण्डित मालवीयजीका आदेश था कि मैं शिमला जाऊँ और मेरे मित्र श्री एन्ड्रयूजने भी मुझे सूचना दी थी कि वाइसराय महोदय मुझसे मुलाकात करना चाहते हैं। मैं वहाँ गया और वाइसराय महोदयसे मिला। मुझे वाइसराय महोदयसे जो कुछ कहना था सो विस्तारसे कहा और उन्होंने भी उसे अत्यन्त प्रेम, धैर्य और शान्ति के साथ सुना। वहाँ जो कुछ हुआ उसका ब्यौरेवार विवरण में ‘यंग इंडिया’ में पहले ही प्रकाशित कर चुका हूँ।[२] अब इस मुलाकात के बाद वाइसराय महोदय और मैं एक-दूसरेको अधिक अच्छी तरह जानने लगे हैं। अब वे समझ गये हैं कि असहयोगके द्वारा मैं क्या प्राप्त करना चाहता हूँ।

भारतका भविष्य स्वयं हमारे ही हाथमें है। हमको एक स्पष्ट और सादेसे कर्त्तव्यका पालन करना है। हमको अहिंसक रहना है और हिन्दुओं एवं मुसलमानोंको एकताकी ग्रन्थिमें बँध जाना है। हमें देशमें बीस लाख चरखे चलवाने हैं। हमें राष्ट्रीय महासभा [ कांग्रेस ] के लिए एक करोड़ सभासद बनाने हैं और तिलक स्वराज्य कोषमें एक करोड़ रुपया एकत्र करना है। हमें यह सब ३० जूनके पूर्व ही कर लेना है। अत्यन्त खेदकी बात है कि इन दो महीनोंमें जितना कुछ किये जानेकी आशा की जा रही थी उतना हम नहीं कर पाये हैं। और इसके दोषी हम स्वयं हैं। हमारे ही प्रयत्नोंके अभाव के कारण हमारा प्रचार कार्य बहुत आगे नहीं बढ़ पाया। यदि हम लोग उतना कार्य भी नहीं कर सकते जितना करनेका कांग्रेसका आदेश है तो हम स्वराज्य कैसे प्राप्त कर सकते हैं? या खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका निराकरण कैसे

  1. इस सभाका आयोजन उत्तरी बम्बई के उपनगर माटुंगा में सायं ७-३० पर स्थानीय वार्ड कांग्रेस कमेटी और माटुंगा नागरिक संघके तत्त्वावधान में किया गया था। इसका विवरण बॉम्बे क्रॉनिकल, ३०-५-१९२१ तथा गुजराती, ५-६-१९२१ में भी प्रकाशित हुआ था तथा उनसे इसका मिलान कर लिया गया है।
  2. देखिए “शिमला - यात्रा”, २५-५-१९२१।