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भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभामें

इसमें अनुत्तीर्ण न होंगे। मैं माटुंगावासियोंसे स्वराज्य कोषमें यथाशक्ति दान देनेका अनुरोध करता हूँ।

आप यह तो कह ही नहीं सकते कि आपके पास देनेके लिए धन नहीं है। क्या आप अपने पुत्रों और पुत्रियोंके विवाहों में रुपया पानीकी तरह नहीं बहाते? अथवा स्वयं अपने लिए किसी वस्तुकी आवश्यकता होनेपर मनमाना खर्च नहीं करते? आज तो भारतका विवाह रचा जा रहा है। आपको उसमें खुले हाथों सहायता देनी चाहिए। यह सोचनेकी आवश्यकता नहीं कि हमें कितना रुपया इकट्ठा करना है। केवल यही ध्यानमें रखें कि आप स्वराज्यके निमित्त जितना दे सकें उतना अवश्य दें।

इस समय किसी भी स्त्रीको धार्मिक रीतियोंका पालन करनेके विचारसे जो आभूषण धारण करना आवश्यक है उससे अधिक धारण करनेका अधिकार नहीं है। स्त्रियोंको सीताका अनुकरण करना चाहिए। सीताने श्रीरामचन्द्रजीके साथ वन जाते समय सब आभूषण उतार दिये थे। भारतीय स्त्री-वर्गको आज ऐसा ही करना चाहिए। बहनो, यदि आप रामराज्य चाहती हैं तो आप स्वराज्य कोषमें अपने आभूषणोंको दे डालें। स्त्रियाँ विशेष रूपसे ऐसे आन्दोलनोंके योग्य होती हैं; वे पुरुषोंसे भी अधिक काम कर सकती हैं; इसीलिए मैं उनसे यह अनुरोध कर रहा हूँ। यदि स्त्रियोंका अनुराग विदेशी कपड़ों, आभूषणों, फ्रांसीसी और जापानी रेशम एवं मैनचेस्टरके सूती कपड़ोंके प्रति बना रहेगा तो स्वराज्य कैसे प्राप्त हो सकता है। बहनो, क्या आप देशके इस महान् यज्ञमें ऐसे बाहरी आडम्बरोंकी आहुति नहीं दे सकतीं और सादा खद्दर नहीं पहन सकतीं? हमारे देशमें अनेक भाई और बहनें अधनंगे फिरते हैं। उन्हें भी पूरा कपड़ा मिल सके यह मेरी इच्छा है। इसलिए आप खद्दरको ही सबसे अच्छा और सबसे पवित्र पहनावा मानें। आप प्रत्येक घरमें सूत कातनेकी एक मिल खोल दें, परन्तु प्रत्येक घरमें चरखा पहुँचाये बिना यह सम्भव नहीं है। मुझे उन बड़ी-बड़ी मिलोंकी दरकार नहीं है जो हमारे पुरुषों और स्त्रियोंका सत निकाल लें। विदेशी कपड़ा पहनना भारतीयोंके नजदीक एक पाप और अत्यन्त अनुचित कर्म होना चाहिए। जबतक खद्दरकी पवित्रता आपके मनमें नहीं समाती तबतक स्वराज्य दूर ही रहेगा। महीन स्वदेशी कपड़ोंके अभावमें खद्दरपर ही सब्र कर लेना होगा। अपने भाइयों और बह्नों के हाथके कते हुए सूतसे बुना हुआ खट्टर सबसे अधिक अच्छा, दर्शनीय तथा पवित्र है। हमें खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका निराकरण करानेके लिए यह सब करना होगा।

मुझे विश्वास है कि इस नगरीसे धर्मका लोप नहीं हो गया है। मेरा खयाल है कि बम्बई निवासी ऐशो-आरामकी चीजें पसन्द करते हैं, विलासमय और आरामका जीवन बिताने के शौकीन हैं और उन्हें संसारकी बढ़िया-बढ़िया चीजें चाहिए परन्तु उनके हृदय पापमय नहीं हैं। अब स्वराज्यकी खातिर उन्हें इन सबका त्याग करना पड़ेगा। आपको सिनेमाओं, नाटकघरों और शराबखानोंको तिलांजलि देनी होगी और सम्पूर्ण दुर्गुणोंका परित्याग करना होगा। आपको व्यभिचार छोड़ना होगा। ‘मातृवत् परदारेषु’ यह सबका भाव होना चाहिए। परमेश्वर आपको इतना बल और साहस दे कि आप देशके इस आड़े समय उसके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन कर सकें। श्रीमती