पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१८७

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टिप्पणियाँ १५७ (१०) अफगानोंको यह जतला देना हर असहयोगीका कर्त्तव्य है कि उसका पक्का विश्वास है कि असहयोग खिलाफतको युद्धके पहलेका उसका दर्जा दिलाने में सर्वथा समर्थ हैं और यह भी कि भारत उनका सशस्त्र हस्तक्षेप नहीं चाहता । अफगानोंको यह भी जतला दिया जाना चाहिए कि ब्रिटिश सरकार के साथ भारतको गुलामीमें रखनेवाले करारसे इनकार करनेपर असहयोगी उनकी सराहना करेंगे और यह भी कि अपने पड़ोसियोंके प्रति भारतका मैत्रीको छोड़ और कोई भाव नहीं है । अंग्रेजीकी पढ़ाई पाठक अन्यत्र देखेंगे मैंने डा० ठाकुर' द्वारा की गई असहयोगकी टीकाका जवाब ' देनेकी विनम्र कोशिश की है । उसके बाद शान्तिनिकेतनके व्यवस्थापकके नाम लिखा उनका पत्र मुझे पढ़नेको मिला। मुझे यह देखकर दुःख हुआ कि वह पत्र तथ्योंको जाने बिना गुस्से में लिखा गया है। लन्दनमें कुछ विद्यार्थियोंने श्री पियर्सन', जो बहुत अच्छे और सच्चे अंग्रेज हैं, की बात सुननेसे इनकार कर दिया, यह जानकर कवि रोष में आ गये। और उसी प्रकार इस बातपर भी वे रुष्ट हुए हैं कि मैंने महिलाओं को अंग्रेजीकी पढ़ाई बन्द करनेकी सलाह दी है। अंग्रेजीकी पढ़ाई बन्द करनेके मैंने जो कारण दिये हैं कविने उन्हें अपने लिए मान लिया । क्या ही अच्छा होता कि वे विद्यार्थियोंकी अभद्रताको असहयोग के मत्थे न मढ़ते । कविको भूलना नहीं चाहिए था कि असहयोगी एन्ड्रयूज साहबको श्रद्धेय मानते हैं, स्टोक्सकी इज्जत करते हैं और उन्होंने नागपुरमें वैजवुड, बॅन स्पूर और हॉल्फोर्ड नाइट आदिके भाषण पूरे आदर-मानके साथ सुने थे; जब एक अंग्रेज हाकिमने मौलाना मुहम्मद अलीको दोस्ताना तौरपर चायकी दावत दी तो उन्होंने उसे मंजूर किया और हकीम अजमलखाँ जैसे कट्टर असहयोगीने अपने तिब्बिया कालेजमें लॉर्ड और लेडी हार्डिंगके चित्रोंका अनावरण-समारोह किया तथा उसमें कई अंग्रेज दोस्तोंको बुलाया । कितना अच्छा होता अगर कविने अपने मनमें वर्तमान आन्दोलनके सही और धार्मिक स्वरूपके बारेमें सन्देहके दैत्यको एक क्षणके भी लिए न उभरने दिया होता; और काश उन्होंने विश्वास किया होता कि यह आन्दोलन राष्ट्रीयता और देशभक्ति- जैसे पुराने शब्दोंको नई अर्थ-गरिमासे मंडित कर उनके भाव क्षेत्रको कितना विस्तृत कर रहा है । अगर वे कवि-कल्पनासे काम लेते तो स्वयं देख लेते कि भारतीय नारियोंके मनको कुंठित करने की बात तो मैं कभी सोच ही नहीं सकता और न मैं अपने-आप में अंग्रेजी पढ़ने-लिखनेका ही विरोधी हूँ; और उन्हें यह बात भी अवश्य याद आ जाती १. रवीन्द्रनाथ ठाकुर (१८६१ - १९४१ )। २. देखिए अगला शीर्षक । ३. विलियम विंस्टेनली पिथसैन; सी०एफ० एन्ड्यूजके सहयोगी, जिन्होंने बंगाउमें मिशनरी के रूप में काम किया था; वे कुछ समयतक शान्तिनिकेतनमें अध्यापक भी रहे थे । ४. १८६५ - १९२७; प्रसिद्ध हकीम और राजनीतिज्ञ जिन्होंने खिलाफत आन्दोलन में प्रमुख भाग लिया; १९२१-२२ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष । Gandhi Heritage Portal