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भाषण : गुजरात राजनीतिक परिषद्, भड़ौंचमें


हमें अपने-आपपर अविश्वास है; कितने ही लोगोंको मुझपर आवश्यकतासे अधिक विश्वास है। उन्हें लगता है कि गांधी चाहे किसी भी स्थानसे क्यों न हो तीस जूनसे पहले-पहले एक करोड़ रुपया लाकर पूरा कर देगा। लेकिन मैं कहता हूँ कि उनकी यह मान्यता सर्वथा भूलसे भरी है। गांधीमें यदि ऐसा बल हो भी तो इस तरह गांधी के बल बूतेपर मिला हुआ राज्य गांधीराज्य होगा, स्वराज्य नहीं। गांधीराज्यको आप राक्षसी राज्य समझना। गांधी की तो यह इच्छा है कि उसके जितना बल, उसके जितना आत्मविश्वास आप सबमें भी आये। मैं केवल यह चाहता हूँ कि मुझमें जो दोष है, जो पाखण्ड है वह आपमें न आने पाये। मुझे अपने राज्यकी इच्छा नहीं है; मैं तो स्वराज्य चाहता हूँ। मेरी कामना है, हम तीन भाइयोंमें[१] जो शौर्य और एक दिली है वह आप सबमें भी आये।

मैंने ऐसे व्यक्ति भी देखे हैं जिन्होंने अपनी धर्मपत्नीको विवेकपूर्वक समझा-बुझा कर देशके निमित्त उससे उसके आभूषण ले लिये हैं। आप सब पुरुष इसपर विचार करें। अपनी बहनों, अपनी पत्नियोंको समझा-बुझाकर उनसे आभूषण ले लेनेका निश्चय करें। शुरुआत हमेशा घरसे ही करें। जो-जो अच्छे काम हैं उनकी शुरुआत परिवारसे ही होनी चाहिए। जबतक हम परिवारको बचाकर अलग रखते रहेंगे तबतक काम नहीं हो सकेगा। मैं इन प्रतिनिधि भाइयोंसे कहता हूँ कि आप फकीर बनें। एक लँगोटीसे गुजारा करें, दस लाख इकट्ठा करनेके लिए रात-दिन मेहनत करें और उसके बाद कहें कि दस लाख रुपये इकट्ठे नहीं हो सके। जब ऐसी घड़ी आयेगी तब अमीर खुद-ब-खुद शरमिन्दा हो जायेंगे। हममें फकीरकी-सी श्रद्धा आनी चाहिए।

मैं आपको हमेशा के लिए फकीर बननेको नहीं कहता। अंग्रेज स्त्री-पुरुषोंने गत विश्वयुद्धमें जो बलिदान दिये, दक्षिण आफ्रिकामें जंगली माने जानेवाले बोअरोंने जो आत्मत्याग किया, अरबोंने जो बलिदान दिये उनकी अपेक्षा मैं आपसे बहुत कम बलिदान मांगता हूँ। अरबोंने स्वदेशकी खातिर अपने प्रिय प्राणोंकी बलि दी। उन्होंने अंग्रेजोंसे कह दिया कि हमें तुम्हारी ट्राम, मोटर और रेल नहीं चाहिए; हमें तो हमारा देश प्यारा है। इन अरबोंने जिस उत्साहसे आत्म-यज्ञ किया आप भी उसी उत्साहसे, मैं आपसे जो माँग रहा हूँ और जो इन अरबोंके बलिदानसे बहुत कम है, मुझे दें।

स्वराज्य मिलनेपर आप हीरे-मोती, आभूषण सब पहनना। उस समय मुझे आपपर क्रोध न होगा। इस समय तो मुझे क्रोध आता है। हालाँकि मैं द्वेष-भावसे बहुत ज्यादा मुक्त हो गया हूँ फिर भी इस समय जब कि हिन्दुस्तानकी हालत इतनी गिरी हुई है तब यदि किसीको मैं अपने पास श्रृंगार किये तथा आभूषण पहने देखता हूँ तो मुझे बुरा लगता है। मन-ही-मन सोचने लगता हूँ कि ये लोग अभीतक क्यों नहीं समझते? यह काम आप आज रातसे ही शुरू कर दें। नर्मदाके पवित्र तटसे यदि आप इस रंगमें रँगकर जायें तो [ मेरे लिए यही ] बहुत होगा। हिन्दू और मुसलमान दोनोंके हित के लिए काम करनेमें, धर्मकी रक्षा करनेमें कदापि पीछे न हटें। मन्दिर बनवाने तथा लड़के-लड़कीके विवाह में आप जितना धन खर्च करते हैं उतना ही धन

  1. गांधीजीका आशय अपने और अली भाइयोंसे है।