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८३. भाषण : भड़ौंचमें अहिंसा-प्रस्तावपर[१]

१ जून, १९२१

जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जायेंगे वैसे-वैसे हमारा सरकारको आवेदनपत्र देना खत्म होता जायेगा। तब हम सरकारसे नहीं स्वयं अपने-आपसे प्रार्थना करेंगे। अपने संकल्प निभाने में अगर हम कच्चे निकले तो हमारी स्वराज्यकी रोटी कच्ची रह जायेगी और अगर हम पक्के निकले तो स्वराज्यकी रोटी अच्छी तरह पक जायेगी। पैसा, चरखा और सदस्य तो आँखोंसे देखे जा सकते हैं लेकिन शान्ति तो भीतरकी, दिलकी चीज है। वह आँखसे देखनेकी चीज नहीं है। हमें जीवित रहने के लिए श्वासकी जितनी जरूरत है उतनी ही इस लड़ाईके लिए शान्तिकी जरूरत है; यह बात हिन्दुस्तानको समझ लेनी चाहिए। हमें पाषाणकी-सी शान्तिकी आवश्यकता नहीं कि जो ठुकराये जानेपर भी शान्त रहे; हमें जानवरोंकी-सी, उदाहरणार्थ कुत्ते-जैसी, शान्तिकी भी आवश्यकता नहीं जो किसीके मारनेपर उसे काटनेको दौड़े अथवा उसपर भौंकने लगे। हमें तो सरदार लछमनसिंह और दलीपसिंहने जिस शान्तिका परिचय दिया, वैसी शान्तिकी जरूरत है। भाई शौकत अलीके शब्दोंमें कहूँ तो हमें ठंडी ताकतकी जरूरत है। जबतक हम इसे प्राप्त नहीं कर लेते तबतक हम स्वराज्यके योग्य नहीं ठहरते। हवाई जहाजोंके बलपर स्वराज्य प्राप्त करनेकी इच्छा करेंगे तो वह सौ सालतक भी नहीं मिलेगा। मालेगांवके किस्सेसे स्वराज्यकी सुई पीछे खिसक गई। यह सच है कि इससे हम कोई स्वराज्य नहीं खो देंगे। किन्तु इससे हमें पीछे तो हटना ही पड़ा है। सरकारके शान्त रहनेपर ही हम शान्ति रखें, यह हमारी शर्त नहीं है। यह तो सरकारके साथ सहयोग हुआ। हम तो शान्तिमय असहयोग करने बैठे हैं। सरकारकी ओरसे गोलीबारी हो अथवा सिरपर हवाई जहाजसे बम वर्षा हो तब भी शान्तिपूर्वक हम अपना कार्य करते रहें और कलक्टरको मारने न दौड़ें, डाकघरको न जलायें तभी सच्ची शान्ति कहलायेगी। जब हम इस शान्तिको प्राप्त कर लेंगे तब हमें ‘अंग्रेज जायेंगे तो पठान आयेंगे’ ऐसा भय नहीं रहेगा। हममें जबतक शान्तिकी ताकत होगी तबतक हमें कोई नहीं जीत सकेगा।

हमें जो पाठ सीख लेने चाहिए उनमें से एक पाठ शान्तिका है और दूसरा पाठ हिन्दू-मुस्लिम एकताका है। हम यदि परस्पर लड़ते रहेंगे तो हमारी लड़ाई इसी में खत्म होकर रह जायेगी। हमें तो शूरवीरोंके शौर्यकी जरूरत है, कायरताकी नहीं। हमें वीरोंकी शान्ति चाहिए। ऐसी शान्ति मुझ जैसे [शरीरसे] दुर्बल व्यक्ति और मुझ जैसे पाँच व्यक्तियोंको जेबमें रख लेनेवाले [ शरीरसे सबल ] व्यक्ति दोनोंमें ही हो सकती है। मैं जब दस-बारह वर्षका था तब मुझे भूतसे डर लगा करता था। उस समय मेरी धाय रम्भाने मुझसे कहा था कि बेटा भूत आये तब रामका नाम लेना। इस तरह

  1. गुजरात राजनीतिक परिषद्में; देखिए पिछला शीर्षक।