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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


की सलाह मानी है। और उन्होंने अपनी जिह्वापर और भी अधिक काबू रखनेकी शुद्ध और पवित्र प्रतिज्ञा की है।

वाइसराय महोदयको अभी अनुभवकी जरूरत है। उन्हें इस अभूतपूर्व प्रवृत्तिका अध्ययन करना है। उनका भाषण प्राथमिक अध्ययनको ही सूचित करता है। उनके भाषण में सावधानी बरतने की कोशिश की गई है, लेकिन वे अपनी इस कोशिश में पूरी तरहसे कामयाब नहीं हुए हैं। उन्होंने असहयोगीको रिझानेका प्रयत्न किया है। असहयोगी भाषणोंसे रीझनेवाले नहीं हैं। वे भाषणोंका उलटा अर्थ नहीं लगाते, लेकिन उसकी कसौटी तो वे कामसे ही करते हैं।

[गुजरातीसे ]
नवजीवन, ५-६-१९२१

८८. गुजरातका निश्चय

भड़ौंचमें जो परिषद् हुई उसके बारेमें मैं बहुत-कुछ लिखना चाहता था। लेकिन मैं थका-हारा मध्य रात्रिमें अब थोड़ा ही लिखूंगा।

इस मासके अन्ततक गुजरातको दस लाख रुपया इकट्ठा करना है, कांग्रेसके लिए तीन लाख सदस्य बनाने हैं तथा एक लाख चरखे चालू करवाने हैं। यह गुजरातके लिए जितना कठिन है उतना ही आसान भी है।

कार्यकर्त्ताओंके अभाव में यह कार्य कठिन जान पड़ता है। यदि असंख्य व्यक्ति ― स्त्री और पुरुष ― काम करनेके लिए निकल पड़ें तो यह काम आसान है। इन तीनों कामोंमें जो कच्चे असहयोगी हैं, जिन्हें असहयोगके प्रति कोई श्रद्धा नहीं है वे भी मदद कर सकते हैं। केवल वही लोग ये काम नहीं कर सकते जो असहयोगको पाप मानते हैं। मुझे विश्वास है कि गुजरातमें असहयोगको पाप माननेवाले लोग अँगुलियोंपर गिने जा सकने योग्य भी नहीं मिलेंगे।

इतना पैसा किस तरह इकट्ठा हो? (१) यदि स्त्रियाँ अपने आभूषणोंको उतार फेंके, (२) यदि धनाढ्य अपनी सम्पत्तिका अमुक प्रतिशत दें, (३) यदि सब लोग अपनी कमाईका अमुक भाग दें, (४) यदि शराब पीनेवाले अपने शराब के खर्चका अमुक हिस्सा दें, (५) यदि कुछ एक अमीर लोग अपना सर्वस्व अर्पण करें, ― ऐसे बहुत सारे “यदि” लगे हुए हैं। इन शर्तोंको पूरा करके हमें अपना काम सम्पन्न कर डालना है।

भड़ौंच परिषद् में की गई प्रतिज्ञा अगर पूरी न हो तो गुजरातकी नाक कट जायेगी; इस वर्ष स्वराज्य प्राप्त करनेमें विघ्न पड़ेगा। जो चरखा नहीं चला सकते वे सदस्य बनायें। सब कोई अपने-अपने कर्त्तव्यका पालन करें।

हे ईश्वर! गुजरातकी लाज रखना।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन ५-६-१९२१