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८९. टिप्पणियाँ

सदस्योंका धर्म

मुझसे निम्नलिखित प्रश्न पूछा गया है:

जिस तरह आपने प्रतिनिधि कैसे चुने जाने चाहिए इसके बारेमें लिखा है उसी तरह अगर आप सदस्य किन व्यक्तियोंको बनाया जाना चाहिए, इसकी जानकारी भी दें तो अच्छा होगा।

यह स्पष्ट है कि जो लोग असहयोगके प्रस्तावको पसन्द करते हैं वे लोग उन्हीं व्यक्तियोंको अपना प्रतिनिधि चुनेंगे जो इस प्रस्तावका समर्थन करनेवाले हों। मतलब यह कि प्रतिनिधिको वकील नहीं होना चाहिए, खिताबयाफ्ता नहीं होना चाहिए, खादी पहननेवाला होना चाहिए और ऐसा होना चाहिए जो अन्त्यजोंका तिरस्कार न करता हो आदि। सदस्यके लिए तो जो शर्तें रखी गई हैं वे निम्नलिखित हैं:

१. उसकी आयु २१ वर्षकी अथवा उससे ज्यादा होनी चाहिए।
२. वह प्रतिवर्ष चार आना चन्दा देगा।
३. स्वराज्यको हिन्दुस्तानका ध्येय मानेगा।
४. स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए शान्ति और सत्य, इन्हीं दो साधनोंको स्वीकार करेगा।

इतनी शर्तोंका पालन करनेवाला व्यक्ति भले ही सरकारसे सहयोग करनेवाला हो, खिताबयाफ्ता हो, वकील हो, विलायती कपड़े पहनता हो तथापि वह कांग्रेसका सदस्य बन सकता है। कांग्रेस एक ही पक्षका प्रतिनिधित्व नहीं करती और इसीसे इसका सदस्य बनने के लिए कमसे कम प्रतिबन्ध ही होने चाहिए। जो सर्वमान्य प्रतिबन्ध हैं उन्हीं प्रतिबन्धोंको रखा गया है। यह तो हुआ कांग्रेसकी नियमावलीका अर्थ।

मुझे निजी तौरसे निस्सन्देह यह उम्मीद है कि अब असहयोग भी इतना व्यापक बन गया है कि सभी असहयोगी ही होंगे। लेकिन देशकी भावनाको पढ़नेमें मुझसे भूल भी हो सकती है अथवा यह भी हो सकता है कि देश जो मानता है उसे आज करनेके लिए तैयार नहीं है। हाँ, असहयोगी होनेका दावा करनेवाले व्यक्तिसे मैं अवश्य ही असहयोगकी शर्तोंका पालन करनेकी अपेक्षा करता हूँ। लेकिन अगर कांग्रेसके सदस्य अधिक संख्यामें असहयोगी बन जायें तो वे आगामी [ अधिवेशनमें ] कांग्रेसके विचारोंको बदल भी सकते हैं। दिन-प्रतिदिन मामला शुद्ध होता जाता है, साध्य और साधन स्पष्ट होते जाते हैं। “कठिन समय में (जो टिका रहे वही) मर्द” इस कहावत के अनुसार हम देशमें ‘मर्द’ की तलाश करते रहते हैं। इस मर्दकी तलाश करनेमें कांग्रेस एक साधन है।

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