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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अली बन्धुओंकी प्रतिज्ञा

मौलाना मुहम्मद अली और मौलाना शौकत अलीने अपने हस्ताक्षरों सहित जो स्पष्टीकरण प्रकाशित किया है वह नीचे दिया जा रहा है।[१]

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन ५-६-१९२१

९०. टिप्पणियाँ

वक्तकी पुकार

यह महीना खत्म होनेसे पहले अगर हमने बेजवाड़ा-कार्यक्रम पूरा नहीं किया तो यह एक दुःखद घटना ही होगी। इन टिप्पणियोंके प्रकाशित होते-होते इस महीने के सात दिन निकल जायेंगे। बेकार खोने के लिए अब एक मिनटका समय भी नहीं है। हम अबतक मुश्किलसे बीस लाख रुपये ही जमा कर पाये हैं। अगले तीन हफ्तों में अस्सी लाख इकट्ठा करना असम्भव-सा ही लगता है। लेकिन हम काममें जुट जायें और रात-दिन एक कर दें तो असम्भव भी सम्भव हो सकता है। इक्कीस सूबे हैं और अगर हर सूबा अपनी हैसियत और काबिलियत के मुताबिक दे तो बाकीकी रकम आसानीसे मिल सकती है। बेजवाड़ा-जैसा ठोस कार्यक्रम देशके सामने पहली बार रखा गया है। अगर लोग साथ दें और काफी कार्यकर्त्ता निकल पड़ें तो तीस करोड़ लोगोंसे स्वराज्य जैसे महान् उद्देश्यके लिए और लोकमान्यकी स्मृति रक्षा जैसे ऊँचे कामके लिए एक करोड़ रुपया जमा कर लेना कोई बड़ी बात नहीं। चाहें तो हमारे देशकी महिलाएँ ही अपने गहनोंके रूपमें इतना रुपया दे सकती हैं; और चाहें तो शराब पीनेवाले अपनी शराबकी मदसे ही इतनी रकम जमा कर सकते हैं। स्वदेशी आन्दोलनसे सबसे ज्यादा फायदा उठाया है मिल मालिकोंने; वे चाहें तो एक दिनमें अस्सी लाख रुपया दे सकते हैं। अकेले मारवाड़ी अपनी पूँजीको छुए बिना ही इतनी रकम जमा कर दे सकते हैं; और यही बात भाटियों, मेमनों, पारसियों और बनियों के बारेमें भी है। ये सब मालदार तबके हैं और हमेशा सार्वजनिक कार्यों में कमोबेश मदद करते रहे हैं। चाहें तो सिन्धी भी इतनी रकम दे सकते हैं। अगर देशके मजदूर अपनी सालाना कमाईका सिर्फ बारहवाँ हिस्सा देने को तैयार हो जायें तो इतनी रकम निकल आयेगी। मैंने कई दोस्तोंसे सलाह ली है कि हिन्दुस्तान के अलग-अलग तबकोंमें कौन कितना दे सकता है। नीचे एक काम चलाऊ आधार प्रस्तुत किया जाता है:

(१) नौकरीपेशा लोग अपनी माहवारी तनख्वाहका दसवाँ हिस्सा दें।
(२) वकील, डाक्टर, व्यापारी और इसी तरहके दूसरे लोग पिछले मई महीने को आधार मानकर अपनी सालाना आमदनीका बारहवाँ हिस्सा दें।
  1. देखिए “अली भाईयोंकी क्षमा-याचनाका मसविदा”, २१-५-१९२१।