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गुजरात विद्यापीठकी विभिन्न परीक्षाओंमें सम्मिलित होनेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या इस प्रकार है ― बी० ए० में ४६, बी० एससी० में ४, इंटरमीडिएट आर्ट्स में ९६, इंटर विज्ञानमें ४६ और मैट्रिक परीक्षामें ५४८। उत्तीर्ण परीक्षार्थियोंकी संख्या क्रमश: ३९, २, ६५, ९ और ३७४ रही।

पंजाब आगे बढ़ रहा है

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके महामन्त्रीको पंजाबमें असहयोगके कामका जो विवरण दिया गया, उसे मैंने भी देखा। पाठकोंकी जानकारीके लिए उक्त रिपोर्टसे कुछ उत्साहवर्धक आँकड़े मैं नीचे उद्धृत कर रहा हूँ। विवरण तैयार किये जानेकी तिथि यानी ३० अप्रैलतक कुल २,०९,०८१ रुपये, १३ आने चन्दा जमा हुआ। जिस मुस्तैदीसे वहाँ चन्दा जमा किया गया उसके बारेमें में पहले लिख चुका हूँ। पंजाब सब सूबोंसे आगे है और इसके लिए उसे बधाई दी जानी चाहिए। अन्य किसी सूबेने भी अबतक दो लाख जमा किये हैं, यह मुझे नहीं मालूम। लेकिन जैसा कि कायदा है, ज्यादा देनेवालों से और भी ज्यादाकी उम्मीद की जाती है, इसलिए मैं आशा करता हूँ कि निर्धारित समय- के इस आखिरी महीनेमें पंजाब और भी जोर लगायेगा और सम्भव हुआ तो जितना कर चुका है उससे ज्यादा इकट्ठा करके अपने प्रथम स्थानको अक्षुण्ण बनाये रहेगा। मैंने सम्भव शब्दका प्रयोग इसलिए किया कि यद्यपि बम्बईका सूबा अभीतक बिलकुल सोया पड़ा है, लेकिन दूसरा कोई भी सूबा उसे मात दे सके ऐसी सम्भावना मुझे दिखाई नहीं देती। लेकिन पंजाबकी सामर्थ्य मैं जानता हूँ और यदि वह पक्के इरादे से जुट जाये तो चाहे प्रथम न रह सके पर उसका दूसरा नम्बर तो कहीं जा नहीं सकता। मैं चन्दा माँगने के मामलेमें मालवीयजी महाराजके बाद लालाजीका[१] ही नम्बर समझता हूँ। आर्यसमाजकी हलचलोंके कारण पंजाबका मध्यम वर्ग राजनैतिक आन्दोलनोंके लिए खुले हाथों पैसा देनेका अभ्यस्त हो गया है। बाकीकी रकम अकेले अमृतसरके व्यापारी ही पूरी कर सकते हैं। और एक हिसाबसे अमृतसरको बाकी रकम पूरी करनी भी चाहिए। फिर जालन्धर, लायलपुर, रावलपिंडी, मुलतान, गुजरांवाला, स्यालकोट, हाफिजाबाद आदि भी हैं, जिनमें से हरेक काफी बड़ी रकम दे सकता है। लाहौर खासमें भी बहुत-से धनी व्यापारी हैं, मगर मुश्किल यह है कि हममें आत्मविश्वासकी कमी है, वरना पंजाब और बम्बई दोनों ही मिलकर सारी कसर पूरी कर सकते हैं। और कमसे कम पंजाबसे तो हमें यह आशा करनी ही चाहिए।

शिक्षाके मामलेमें भी पंजाबका काम बुरा नहीं है। हालाँकि मार्शल लॉके दिनोंमें पंजाबके कालेजों और स्कूलोंके विद्यार्थियोंको जितना कुछ भुगतना पड़ा है, उसे देखते हुए वहाँ इस दिशामें और भी ज्यादा काम होना चाहिए था। ३५० से ज्यादा विद्यार्थी हमेशा के लिए कालेज छोड़ चुके हैं। इनमें से ८५ के करीब जो सबसे प्रतिभासम्पन्न छात्र थे, वे राष्ट्रकी सेवामें लग गये हैं। राष्ट्रीय शिक्षाका एक मण्डल भी वहाँ बन गया है। गुजरांवाला के ‘गुरु नानक खालसा कालेज’ ने वहाँके विश्वविद्यालयसे अपना सम्बन्ध-

  1. लाला लाजपतराय।