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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


विच्छेद कर लिया है। कांग्रेसकी प्रादेशिक समितिने लाहौर में एक नेशनल कालेज खोल दिया है। पुराने आठ स्कूलोंने, जिनमें कुछ तो काफी प्रतिष्ठित हैं, अपनेको राष्ट्रीय शिक्षण संस्थामें परिवर्तित कर लिया है और पन्द्रह नये राष्ट्रीय स्कूल और भी खोले गये हैं। अगर श्री सन्थानम् (मन्त्री) इन राष्ट्रीय संस्थाओं में शिक्षा पा रहे विद्यार्थियोंकी ठीक-ठीक संख्या बता सकते तो बहुत अच्छा होता। कुछ स्कूलोंको देखनेका मुझे मौका मिला है, उसके आधारपर मैं कह सकता हूँ कि सब मिलाकर पाँच हजार- से कम विद्यार्थी तो नहीं ही होंगे। करीब २५ शिक्षकोंने सरकारी नौकरी छोड़ दी है। ४१ वकीलोंने प्रैक्टिस बन्द कर दी है। इनमें से १३ वकील प्रादेशिक समितिसे गुजारा पा रहे हैं। ८० स्थानोंमें पंचायतें कायम हो गई हैं। अप्रैल महीने के अन्तमें पंजाबमें २५८ कांग्रेस कमेटियाँ थीं। हर कमेटीकी औसत सदस्य संख्या ७५ है। रोहतक जिलेका नम्बर पहला है, वहाँ ४७ कमेटियाँ हैं।

चरखेके मामलेमें तो पंजाबको भारतका दूसरा कोई भी सूबा मात नहीं दे सकता। रिपोर्टमें यह बात बड़े गर्व के साथ कही गई है कि शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहाँ चरखा न मिले। “कुछ ही दिन पहलेतक लोग हाथपर-हाथ धरे बैठे रहते थे, लेकिन पिछले दो महीनेसे सभी घरोंमें चरखा चलानेकी पुरानी बात रूढ़ होती जा रही है।” पंजाबमें चरखेका आम रिवाज होनेके बावजूद, यह कितने दुःखकी बात है कि पंजाबी लोग आसानीसे पसीना सोखनेवाली सुन्दर, मुलायम और टिकाऊ खादी के बदले मिलका भड़कीला, भोंड़ा, कड़ा और कलफदार कपड़ा पहनते हैं, जो हमारे देशके मौसमके जरा भी अनुकूल नहीं। इसलिए रिपोर्टमें यह पढ़कर कि “खाते-पीते मालदार तबकोंमें खद्दर पह्ननेका चलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है” मुझे बहुत खुशी हुई। पंजाब में जुलाहोंकी भारी कमी महसूस की जा रही है। बहुतसे लोगोंको यह नहीं मालूम कि भरती एजेंटोंकी धूर्ततापूर्ण, चिकनी-चुपड़ी और सब्ज बाग दिखानेवाली बातोंमें फँसकर पंजाबी जुलाहे अपना पेशा छोड़कर फौजका, हत्या करनेका पेशा अपनाते जा रहे हैं। किसी जमानेमें पंजाबमें जुलाहोंकी संख्या सारे भारतकी तुलना में, वहाँकी आबादी के लिहाजसे, काफी ज्यादा थी। अब चूंकि बुनाईका धन्धा दिनोंदिन इज्जत और अच्छी कमाईका धन्धा होता जा रहा है, यह आशा की जाती है कि तथाकथित सिपहगरीके बदनाम धन्धे के बदले पंजाबी लोग इस नायाब पेशेको ज्यादासे ज्यादा अपनायेंगे।

इस तरह असहयोगके मामलेमें पंजाबके आँकड़े कुल मिलाकर अच्छे ही कहे जायेंगे।

असमिया कुली

मैंने इस झगड़े के बारेमें जान-बूझकर ही नहीं लिखा, वैसे श्री एन्ड्रयूज और दूसरे लोगोंसे जो मौकेपर पहुँचकर मामलेको सुलझानेकी कोशिश कर रहे हैं, मैं सम्पर्क बनाये हुए हूँ। वहाँ झगड़ा कैसे शुरू हुआ, इसके बारेमें मुझे कुछ भी नहीं मालूम। अगर मेरा नाम लेकर किसीने मजदूरोंसे मालिकोंको छोड़ जानेकी बात कही हो तो मुझे उसके लिए सख्त अफसोस है। जाहिरा तौरपर यह मालिकों और मजदूरोंका झगड़ा