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और उनके कामका शोर भी नहीं मचा, परन्तु उसका काफी कारगर प्रचारात्मक असर तो हुआ ही। और एक बात तो बिलकुल साफ है। जबतक कांग्रेसकी तीनों शर्तें पूरी नहीं हो जातीं, सहयोग करनेकी बात सोची भी नहीं जा सकती।

मैं मंजूर करता हूँ कि अकेला ‘बेजवाड़ा-प्रस्ताव’ अपने-आपमें स्वराज्य कायम करने के लिए काफी नहीं है। लेकिन मैं उसे स्वराज्यकी दिशामें एक काफी अच्छा कदम मानता हूँ। कार्यक्रमकी पूर्ति राष्ट्रमें आत्मविश्वास पैदा करेगी और उसे इस योग्य बना देगी कि आवश्यकता पड़नेपर वह दूसरे कदम उठा सके। कांग्रेसके सदस्य राष्ट्रकी विभिन्न सभा-समितियोंके लिए राष्ट्रीय प्रतिनिधियोंका निर्वाचन करते हैं, इसलिए कांग्रेसके एक करोड़ सदस्य बनानेका मतलब है एक करोड़ निर्वाचक, जो स्वराज्यमें सच्चे निर्वाचक मण्डलका बीजकेन्द्र होंगे। बीस लाख चरखे चलते रहनेका मतलब है कि भारत गरीबीको मार भगाने, आत्मनिर्भर बनने और आर्थिक स्वाधीनता प्राप्त करनेके लिए कृत संकल्प है। एक करोड़ रुपया इकट्ठा करना इस बातका जीता जागता प्रमाण है कि देशने अपने भाग्यको सँवारनेका पक्का फैसला कर लिया है।

दूसरे मुल्कोंके इतिहास हमारे मन-मस्तिष्कपर इस तरह छाये हुए हैं कि हम किसी भी तरह इस बातपर विश्वास नहीं कर पाते कि यहाँ भी तीस या सौ वर्षों तक चलनेवाली लड़ाइयोंकी पुनरावृत्ति हुए बिना और इसीलिए अच्छी सैनिक शिक्षा और काफी अस्त्र-शस्त्रोंके बिना हम स्वतन्त्र हो सकते हैं। अपने इतिहासकी ओर हम आँख उठाकर भी नहीं देखते और सर्वथा भूल जाते हैं कि इस महान् देशमें सम्राट् और राजाधिराज आये और चले गये, राजवंश बने और बिगड़े पर देश और जनता उनसे अछूती ही रही, उसपर कोई असर नहीं हुआ। यहाँतक कि पिछले महायुद्धका यह ताजा सबक भी हम याद नहीं रखना चाहते कि हमें फौजी तैयारियों की इतनी जरूरत नहीं है जितनी कि भारतके भविष्यके बारेमें अपना दृष्टिकोण बदलनेकी। गुलामीकी आदतके कारण हमारे मनमें यह धारणा बद्धमूल हो गई है। कि हम कुछ नहीं हैं, इसीलिए करोड़ोंकी संख्यामें होते हुए भी हम अपने-आपको लाख-दो लाख अंग्रेजोंके मुकाबले हेय समझते हैं, जब कि सारेके सारे अंग्रेज शासक भी नहीं हैं। जिस दिन हम अपनेको दीन-हीन समझना छोड़ देंगे और ब्रिटिश राज्यका भय अपने अन्दरसे निकाल फेंकेंगे उसी दिन स्वतन्त्र भी हो जायेंगे। यह वैचारिक क्रान्ति इसी सालके दौरान की जा सकती है, इसमें मुझे जरा भी सन्देह नहीं है। और मैं यह आशा करता हूँ कि भारत निर्धारित समयपर तैयार हो जायेगा। अभीतक हमने प्रतिज्ञाएँ तो बहुत कीं परन्तु उनमें से पूरी एक भी नहीं की। अगर हम कांग्रेसके पिछले दो साल पुराने प्रस्तावोंको निकालकर देखें तो पता चलेगा कि जिन प्रार्थनापत्रोंको भेजनेका हमने फैसला किया था उन तकको नहीं भेजा। अभीतक हम हर बात के लिए सरकारका मुँह ताकते रहे हैं, जब कि उसने हमारे लिए किसी भी मामलेमें कुछ भी नहीं किया है। इसीलिए हमारे अन्दर गहरी निराशा घर कर गई है। न हमें अपने-आपपर विश्वास रह गया है, न सरकारपर ही। वर्तमान आन्दोलन, निराशाकी काली रातको आशा और विश्वासकी सुनहरी किरणमें बदलनेकी कोशिश है। जब हम अपने-आपपर विश्वास करने लग जायेंगे तो मैं दावेके साथ कहता हूँ