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वाइसरायका भाषण


बचना नहीं, अपनी आत्मा और अपने दोस्तोंके सम्मुख अपनी स्थितिका स्पष्टीकरण करना ही है। ऐसी सूरतमें उन्हें यह आश्वासन देना कि जबतक वे अपने वचनका पालन करते रहेंगे, उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जायेगा, यदि आपत्तिजनक न भी माना जाये तो उनपर एहसानका बेकार बोझ लादना ही हुआ। लॉर्ड रीडिंगकी सरकार अली बन्धुओंपर जब उसका जी चाहे मुकदमा चलानेके लिए आजाद है।

असहयोगके इस आन्दोलन में छिपे या खुले तौरपर कहीं भी कूटनीतिकी गुंजाइश नहीं है। यहाँ तो सिर्फ एक ही कूटनीति है और वह है सत्य कहना और हर कीमत पर उसका पालन करना। वाइसरायने मुझे अली बन्धुओंके भाषण दिखाये थे; मुझे उनमें से कुछ अंश पढ़नेमें ठीक नहीं लगे। उनसे हिंसाको भड़कानेवाला अर्थ निकाला जा सकता था। इसके लिए अली बन्धुओंकी गिरफ्तारी हो सकती है या नहीं, इसकी जरा भी चिन्ता किये बगैर मैंने मन-ही-मन पक्का फैसला कर लिया कि उन्हें अपनी सफाई देनी ही चाहिए और यही सलाह मैंने उन्हें दी। वाइसराय महोदयसे भी मैंने यही कहा था कि अगर वे असहयोगियोंके सन्देहों और अविश्वासोंको मिटाना चाहते हैं तो कूटनीति छोड़कर बिलकुल सीधा और खरा व्यवहार करें। असहयोगीको रक्षा या शरणकी जरा भी जरूरत नहीं है; वैसी सूरतमें वाइसराय महोदयको भी पारस्परिक विश्वास पैदा करनेके लिए शासक वर्गके अपराधियोंको पनाह नहीं देनी चाहिए।

शासक-वर्गोंके लिए सचमुच न तो वर्तमान भारतमें कोई स्थान है और न भावी भारतमें रहेगा। इसलिए अगर वाइसराय महोदय अपने इस विश्वाससे चिपटे रहे कि “न्यायपूर्ण शासन करनेके हमारे इरादोंका भारतीय दिल खोलकर स्वागत करेंगे” तो उन्हें अपने इस कथनकी गलती भी मालूम हो जायेगी। मैं भविष्यवाणी कर सकता हूँ कि भारतके भविष्यके लिए इस बातका कोई मूल्य नहीं रहेगा कि अंग्रेजोंके इरादे क्या हैं, उसके लिए तो जिस चीजका मूल्य होगा वह है भारतीयोंका अपना इरादा। भारतीयोंका इरादा बिलकुल उजागर है। अपनी मर्जीके मुताबिक अपना राज-काज खुद करनेकी हम भारतीयोंकी माँग दिनोंदिन जोर पकड़ती जा रही है। हम भारतवासी इस बातको बहुत अच्छी तरह समझ गये हैं कि कोई भी अच्छी-से-अच्छी सरकार अपनी सरकारका, स्वराज्यका स्थान नहीं ले सकती।

तो वाइसराय महोदय के इरादोंके बारेमें हमें कोई सन्देह, कोई आशंका नहीं है, क्योंकि मुझे विश्वास है कि उनके इरादे नेक हैं; जो भी भय और आशंका है वह उस आदर्शके बारेमें है जिसपर वे चल रहे हैं। वे आज नहीं; भविष्यमें पता नहीं कब भारतके ऊँचे भविष्यकी बात सोचते हैं। इसके विपरीत, असहयोगियोंका ऐसा खयाल है कि वर्तमान शासन-प्रणाली भारतके ऊँचे भवितव्यका आज ही गला घोट देनेपर उतारू है। वह शासन-प्रणाली भारतको अगर हमेशा के लिए न सही तो कमसे-कम काफी लम्बे अर्सेतक गुलाम बनाकर रखनेके लिए ईजाद की गई है। कभी- कभी छोटे-मोटे अन्तर या मतभेदके पीछे मूलभूत आदर्शोंका मतभेद या अन्तर होता है। इसलिए जब कोई यह सोचता है कि भारतका भावी लक्ष्य भले ही स्वतन्त्रता हो किन्तु आज तो उसे किसीके आश्रयमें ही रहना चाहिए, तो मुझे कहना होगा कि