पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/२२

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१. भाषण : रासको सभामें' १५ अप्रैल, १९२१ एक समय मैने जनताको सलाह दी थी कि वह सरकारको उसकी मुश्किलके वक्त मदद करे। साम्राज्यके अन्तर्गत अगर हम हक प्राप्त करना चाहते हों तो पहले हमे अपना फर्ज अदा करना चाहिए, ऐसा मैंने कहा था और इसी कारण खेड़ा जिले- का संघर्ष पूरा होनेके तुरन्त बाद में लोगोको फौजमे भरती होनेके लिए समझाने माया था। मैं सिपहारीके लिए तैयार हो गया था। उसके लिए मुझे अब भी कोई पश्चा- ताप नहीं होता। इससे तो मुझे कोमको फायदा हुआ ही दिखाई देता है। सिपहगरी अपनानेके अपने प्रस्तावसे हमने अपनी भलमनसाहत दिखाई। उसके लिए मुझे दुःख नही है। दुःख सिर्फ इतना ही होता है कि जब मैं खेड़ा जिलेके साहसी और दृढ़ पाटीदारो तथा 'कोरो' के पास गया, उस समय बहुत कम लोग सिपाही बननेके लिए तैयार थे। उसका कारण सरकारके प्रति उनकी नाराजगी अथवा अविश्वास न था बल्कि उसका कारण यह था कि उनमे हिम्मतकी कमी थी। वे मरनेके लिए तैयार न थे। उनको किसीके लिए अथवा सरकारके लिए मरनेकी बात पसन्द न थी। लेकिन अब तो युग ही बदल गया है। मै अब सरकारके विरुद्ध हूँ, इस सरकारके लिए लड़ना मै अधर्म समझता हूँ, उसके प्रति मेरे मनमे पूर्णतः अविश्वासकी भावना घर कर गई है। उस समय मै इस सरकारको राक्षसी नही कहता था, लेकिन भाज मै इस राज्यको राक्षसी अथवा विण-राज्य कहता । जिस अनन्य भक्तिभावसे मै खेडा जिलेमे पैदल घूम रहा था और सरकारके लिए अपनी ताकत खर्च कर रहा था, अपनी उसी ताकतको-विरासतमे मिली अपनी ताकतको -अब में सरकारके विरुद्ध इस्तेमाल कर रहा हूँ; कारण, जो सत्य हो उसे करनेका नाम ही सत्याग्रह है। [गुजरातीसे] नवजीवन, १-५-१९२१ - १. नयजीवनमें प्रकाशित गांधीजीको यात्रा के विवरणसे उद्धृत । २. देखिए खण्ड १४ ।