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पत्र : नरमदलीय भाइयोंको


देशके प्रति उनकी सेवाओंको भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने देश-भरमें मेरे जैसे अनेक व्यक्तियोंको प्रेरणा दी है। मुझे आपमें से अनेक भाइयोंके सम्पर्क में रहनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है और उसकी सुखद स्मृतियाँ मेरे साथ हैं। फिर वह कौनसी चीज है जिसने मुझे आप लोगोंसे दूर करके राष्ट्रवादी दल (नेशनलिस्ट पार्टी) की पाँतमें ला खड़ा किया? मेरे विचार आप लोगों के मुकाबले ‘नेशनलिस्टों’ के विचारोंसे ही क्यों ज्यादा मिलते हैं? यह तो मैं मान नहीं सकता कि आपका देश-प्रेम ‘नेशनलिस्टों’ से घटकर है। मैं नहीं मान सकता कि आप देशकी भलाई के लिए ‘नेशनलिस्टों’ के मुकाबले कुछ कम त्याग करनेके लिए तैयार हैं। और ‘माडरेट’ दलके पास बुद्धि, निष्ठा और योग्यता भी यदि अधिक नहीं तो कमसे कम उतनी तो अवश्य है जितनी कि ‘नेशनलस्टिों’ के पास। इसलिए अन्तर दोनोंके अपने-अपने आदर्शोंका ही है।

मैं यहाँ विभिन्न आदर्शोंकी बहस छेड़कर आपको उबाना नहीं चाहता। अभी इस समय तो मैं असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक कार्यक्रमकी कुछ बातोंकी ओर आपका ध्यान आकर्षित करूँगा। आपको शायद यह शब्द ही पसन्द न आये। हो सकता है। कि आप इस कार्यक्रमकी कई बातोंको सख्त नापसन्द करें; मैं जानता हूँ कि आप नापसन्द करते ही हैं। पर यदि आप इतना मान लें कि असहयोगी भी देशसे उतना ही प्रेम करते हैं जितना कि आप लोग, तो क्या उसके बाद भी आप कार्यक्रमकी उन बातोंको ठीक नहीं समझेंगे जिनके बारेमें कोई मतभेद नहीं हो सकता? मेरा इशारा शराबबन्दीकी तरफ है। मेरा अनुरोध है कि आप इसके बारेमें मेरे कथनको ही प्रमाण मान लें। मैं कहता हूँ कि समूचा देश शराब के अभिशापसे पीड़ित है। जिन अभागोंको इसकी लत लग गई है, हमें उनकी मदद करनी चाहिए। इस लतको छोड़नेमें हमें उनकी सहायता करनी चाहिए। शराबखोरीके खिलाफ जनताकी भावनाएँ उमड़ पड़ी हैं। मेरा अनुरोध है कि आप इसका लाभ उठायें। शराबखोरीके खिलाफ यह आन्दोलन अपने-आप चल पड़ा है। विश्वास रखिये कि इस आन्दोलनके सिलसिले में इस बात का कोई महत्त्व ही नहीं कि शराबकी चुंगीसे होनेवाली सरकारी आमदनीसे सरकार वंचित हो जायेगी। देश तो बस यही चाहता है कि इस बुराईको जितनी जल्द खत्म किया जा सके, कर दिया जाये। आज हमारे देशमें इस बुराई के खिलाफ जनता जितनी एकता और प्रबुद्धता के साथ खड़ी हुई है, इतनी यदि संसारके अन्य किसी देशमें हो गई होती तो वहाँ शराबका बचे रहना नामुमकिन हो जाता। नागपुरमें जन-समुदायने गलतियाँ या ज्यादतियाँ जो भी की हों, पर उसका उद्देश्य सर्वथा उचित और न्यायपूर्ण था। जनता इसपर तुली हुई थी कि जीवनकी शक्ति और स्फूर्तिमें घुन लगानेवाले इस अभिशापसे पिण्ड छुड़ाया जाये। एक बड़ी वजनी-सी दलील इस सिलसिले में दी जाती है कि हिन्दुस्तानको जबरदस्ती संयमित या होशो हवास बनाये रखनेकी, मार-मारकर हकीम बनानेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए और जो शराब पीकर होशो हवास खोना चाहते हैं उनको पीनेकी सुविधा होनी चाहिए। आप इस दलील के चक्कर में नहीं आयेंगे। राज्यका काम लोगोंकी बुराइयोंके लिए सहूलियत जुटाना नहीं होता। हम वेश्यावृत्तिको कायदेसे चलाने और लाइसेंसशुदा बनानेकी कोशिश तो नहीं करते। हम