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गौओंको बचाओ!


नहीं करूँगा। इसलिए मैं अपने शिकारपुरवासी मित्रोंको पूरे आग्रहके साथ सलाह दूंगा कि अभी वे मुसलमान भाइयोंकी सहमतिका इन्तजार करें।

हाँ, अगर उनसे बने तो वे इस बीच मांसाहारका पूरी तरह त्याग करके दिखायें, ताकि उनके मुसलमान भाइयोंको दूसरे मांस गो-मांसकी तुलना में सस्ते दामोंपर मिल सकें। वे यह दिखायें कि किसी गाय या गायकी सन्तानको कष्टमें पाकर, या स्वयं हिन्दुओंके हाथों दुर्व्यवहार सहते देखकर उन्हें सचमुच लज्जाका अनुभव होता है। वे अपनी गोशालाओंको ऐसा रूप देकर दिखायें कि वे बूढ़े और कमजोर गोधनके लिए आश्रय स्थल होने के साथ-साथ आदर्श दुग्धशालाओंका भी काम करें। वे अपनी गोशालाओंमें अच्छीसे-अच्छी नस्लके पशु तैयार करके दिखायें। अगर वे ऐसा करें तो वह गोमाताकी सच्ची सेवा होगी। शिकारपुरवासियोंका कर्त्तव्य यह है कि उनमें से एक-एक व्यक्ति सच्चा असहयोगी बन जाये, ताकि खिलाफत के प्रति किये गये अन्यायका परिशोधन जल्दी हो सके। विश्वास कीजिए, अगर वे खिलाफतकी रक्षाके लिए अपनी सामर्थ्य-भर प्रयत्न करके दिखायेंगे तो उसका मतलब यह होगा कि उन्होंने गायकी रक्षा भी कर ली।

हर हिन्दूको यह बात एक आन्तरिक विश्वासकी तरह माननी चाहिए कि गायकी रक्षा सिर्फ मुसलमानोंके सौहार्दसे ही हो सकती है। हमें स्पष्ट रूपसे स्वीकार करना चाहिए कि गायकी सम्पूर्ण रक्षा पूरी तरह मुसलमानोंकी सद्भावनापर निर्भर है। जैसे मुसलमान हमें अपनी मर्जी के मुताबिक नहीं झुका सकते वैसे ही हम भी उन्हें अपनी मर्जी के मुताबिक नहीं झुका सकते। हम लोग समान और स्वतन्त्र साझेदारीके सिद्धान्तका विकास कर रहे हैं। हम डायरशाही के विरुद्ध, भय और आतंकके विरुद्ध लड़ रहे हैं।

गो-रक्षा हर हिन्दूके हृदयकी सबसे प्यारी कामना है। यह एक संहत विश्वास है और सभी हिन्दुओंमें समान रूपसे व्याप्त है। जिसका गो-रक्षा में विश्वास नहीं है, वह हिन्दू नहीं हो सकता। यह एक उदात्त विश्वास है। प्रोफेसर वासवाणीने गायकी प्रशंसामें जो कुछ कहा है, मैं उसके एक-एक शब्दसे सहमत हूँ। मेरे विचारसे गायकी पूजा निरीहता और भोलेपनकी पूजा है, और गो-रक्षाका मतलब है दीनों और असहायोंकी रक्षा करना। प्रोफेसर वासवाणीने ठीक ही कहा है कि गो-रक्षाका अर्थ है मनुष्य और पशुके बीच बन्धु-भाव। यह एक श्रेष्ठ और उदात्त भावना है, जिसका विकास अथक परिश्रम और तपस्याके बलपर किया जा सकता है। यह किसीपर जबरदस्ती थोपी नहीं जा सकती। जोर-जबरदस्तीसे गो-रक्षाका प्रयत्न करना गो-रक्षा शब्दका दुरुपयोग करना है। कहते हैं, प्राचीन कालमें ऋषिगण गायके कल्याणके लिए तपस्या करते थे। हमें भी उन ऋषियोंके चरण-चिह्नोंपर चलकर तपस्या करनी चाहिए; जिससे हम इतने पवित्र हो जायें कि गो-रक्षा और गो-रक्षासे जिन बातोंका बोध होता है सो सब हम कर सकें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-६-१९२१