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९४. कताई बनाम बुनाई

सेवामें
सम्पादक
यंग इंडिया

११ मईके पत्र में डा० एस० बी० मित्रका पत्र और उसपर आपकी टिप्पणी,[१] दोनोंको मैंने बड़े ध्यानसे पढ़ा। टिप्पणीमें आप कहते हैं कि “हाथ कताई में वे सभी बातें आ जाती हैं जिनका पत्र लेखकने सुझाव दिया है बल्कि उसमें कुछ और भी विशेषताएँ हैं।” मानो आपका मतलब यह है कि हाथ कताई में हाथबुनाई तथा और भी कुछ चीजें शामिल हैं।

लेकिन मेरा तो खयाल है कि अधिकांश लोगोंके लिए कताईका मतलब सिर्फ कताई है, और चूँकि आपका सारा जोर चरखे और कताईपर रहा है; और बुनाई तथा हाथकरघेपर स्पष्ट रूपसे आपने कोई जोर नहीं दिया है, इसलिए करघे और बुनाईकी बात लोगोंके खयालसे उतर गई है। चरखेकी शिक्षा और कताई प्रतियोगिताके बारेमें तो हम बहुत सुनते हैं, लेकिन ऐसा सुनने को नहीं मिलता कि अमुक स्थानमें, नये करघे बैठाने की बात तो दूर बिलकुल ही पुराने ढंगके करघे क्यों न हों, हजारों की तादादमे बैठाये गये हैं। हर दस नये चरखोंको चालू करनेके साथ-साथ तत्काल एक करघा भी अवश्य चालू करना चाहिए ― फिर चाहे वह खोड़ियोंवाला हो या उससे कुछ बेहतर ढंगका या उड़न फिरकीवाला। अगर ऐसा नहीं किया गया तो मौजूदा करघोंपर बहुत दबाव पड़ेगा और हर बुनकरके घर सैकड़ों मन हाथ-कते सूतका ढेर लग जायेगा, क्योंकि बुनने में आसान होनेके कारण वह तो मिलका सूत बुनना ही ज्यादा पसन्द करता है। अभी पिछले सालतक देशमें विदेशी या देशी मिलोंका जितना सूत रहता था, उसके अनुपातमें करघोंकी संख्या भी ठीक थी; लेकिन अब देशमें हाथकते सूतका उत्पादन बहुत बढ़ जानेके कारण वह बात नहीं रह गई है, और इस स्थितिको सुधारनेका एकमात्र उपाय है उसी अनुपात में करघोंकी संख्या बढ़ाना ― अर्थात् मोटे तौरपर हर दस चरखोंपर एक करघेकी व्यवस्था करना। काठियावाड़ में खादीके उत्पादनके लिए काम करनेवाले एक विनम्र कार्यकर्ताके नाते मुझे कहना चाहिए कि नये चरखे तो हजारोंकी तादाद में चालू कर दिये गये हैं, किन्तु करघोंका यह हाल है कि दो-चार दर्जन नये करघे भी नहीं बनाये जा रहे हैं। परिणाम यह हुआ है कि मिलके

  1. देखिए "करघेका अधिक प्रयोग", ११-५-१९२१।