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कताई बनाम बुनाई


सूतसे बुननेवालों और हाथ-कते सूतकी बुनाई करनेवालों के बीच बड़ी जबरदस्त प्रतियोगिता चल पड़ी है, जिससे बुनाईका खर्च बहुत बढ़ गया है।
इस अवसरपर मैं इतना और बता देना चाहूँगा कि कुछ महीने पहले चरखेकी उपयोगिता और सफलताकी सम्भावनाओंके बारेमें मेरे सनमें बड़ी शंकाएँ थीं। मुझे गाँवको अर्थ-व्यवस्थाका कोई ज्ञान नहीं था, इसलिए बहुत-से सैद्धान्तिक अर्थशास्त्रियोंकी तरह मेरे मन में भी यह सन्देह था कि दो या तीन आनोंकी दैनिक आय भी क्या एक व्यक्ति के गुजारेके लिए पर्याप्त है। इसलिए मुझे लगता था कि हाथ कताईकी बात क्या एक अव्यावहारिक कल्पना नहीं है। लेकिन अब यह भ्रम दूर हो गया है। मैं हर रोज देखता हूँ कि हर खादी उत्पादन केन्द्र में कताईका काम करनेको उत्सुक बीसियों औरतें आती हैं। चूँकि उन क्षेत्रों में बुनकरोंको कमीके कारण में काम बढ़ा नहीं सकता, इसलिए उन औरतोंको निराश लौटा दिया जाता है; किन्तु इससे बड़े पैमानेपर हाथ-कताई शुरू करने के आपने जो लाभ बताये हैं वे समझ में आ जाते हैं। लेकिन मैं चाहता हूँ कि बुनाईके महत्त्वपर भी आप कुछ जोर अवश्य दें ― भले ही उतना जोर न दें जितना कि हाथ कताईपर देते हैं। देशको कपड़ा और अधभूख किसानोंको सहायक उद्योग देनेकी दृष्टिसे करवा चरखेसे किसी भी तरह कम महत्त्व नहीं रखता।

अमरेली, काठियावाड़

२०-५-१९२१

अ० वि० ठक्कर

मैं नहीं समझता कि हाथ-बुनाईके हाथ-कताईसे पिछड़ जानेका कोई खतरा है। इसके अतिरिक्त, जिन मौजूदा करघोंपर विदेशी सूत बुना जा रहा है, उन्हें उससे मुक्त करना है। सच तो यह है कि हममें अब भी उतना हाथ-कता सूत तैयार करनेकी क्षमता नहीं आई है, जितना तैयार करना चाहिए। अब समस्या है इस हाथ-कते सूतको मामुली बुनकरों द्वारा आसानीसे बनवा सकनेकी। जहाँतक अतिरिक्त सूतकी बात है, मेरा सुझाव यह है कि इससे रस्सियाँ, फीते, पट्टियाँ आदि बहुत सारी चीजें बनाई जा सकती हैं। हाथ बुनाईको सब लोग उतनी आसानीसे नहीं सीख सकते जितनी आसानी से कताई सीख सकते हैं। लेकिन इससे कोई यह न समझे कि मैं कहता हूँ, हाथ-बुनाईके लिए विशेष प्रयत्न करनेकी जरूरत ही नहीं है। मेरे कहनेका मतलब तो यहीं है कि यह काम भी यथासम्भव तेजीसे चल रहा है। बुनकरोंकी मजदूरी इसीलिए बढ़ गई है कि स्वदेशी के प्रति लोगोंका अधिक चाव हो गया है। मजदूरी बढ़नी भी चाहिए थी। बढ़ईको बुनकरोंसे ज्यादा मजदूरी मिलती है, लेकिन बुनकरोंका काम किसी भी तरह बढ़ईके कामसे कम महत्त्वपूर्ण नहीं।

[ अंग्रेजीसे ],
यंग इंडिया, ८-६-१९२१