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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


स्वतन्त्र धन्धा करनेवाले, दूसरोंकी चिन्ता न करके, किसीके साथ अपनी तुलना न करके, किसी चन्दा उगाहनेवाले की प्रतीक्षा न करके चन्दा लेनेके जो केन्द्र स्थापित किये गये हैं वहाँ आज ही अपनी शक्ति-भर पैंसा देकर अपने कर्त्तव्यको पूरा करें।

जहाँ आप पैसा दें वहाँसे रसीद अवश्य लें।

आप अपने सगे-सम्बन्धियोंको, मित्रोंको यह पुस्तिका पढ़नेके लिए दें और उनसे भी चन्दा उगाहकर तिलक स्वराज्य-कोष में जमा करें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ९-६-१९२१

९७. भाषण : सार्वजनिक सभा, बढवान में[१]

९ जून, १९२१

कितने ही लोग कहते हैं कि मैं काठियावाड़को भूल गया हूँ। ऐसी बहुत सारी चीजें होती हैं जिन्हें भूल जाना ही बेहतर होता है। मैं काठियावाड़से अलग रहता हूँ सो ठीक है। मैं ब्रिटिश भारतमें जो कार्य कर रहा हूँ उसमें काठियावाड़के प्रति मेरी सेवा भी आ जाती है। फिलहाल तो मैं तिलक स्वराज्य-कोष के लिए आपसे भिक्षा माँगता हूँ। मुझे हर रोजके पचास हजार रुपये इकट्ठे करने हैं। यदि तीस जूनतक भारत अपनी प्रतिज्ञाका पालन नहीं करता तो निर्धारित फल प्राप्ति कर सकना ही मुश्किल है। मुझे ईश्वरमें श्रद्धा है। मैं क्षण-क्षण उसके चमत्कारका अनुभव करता हूँ और हमारी प्रतिज्ञाके पूर्ण होनेका मुझे भरोसा है।

अमृतसर कांग्रेस में मैंने सरकारके साथ सहयोग करनेकी बात कही थी, क्योंकि मुझे सम्राट्के घोषणापत्रके प्रति विश्वास था। मुझे उसमें सरकारके पश्चात्तापकी झलक दिखाई दी थी। लॉर्ड सिन्हाकी[२] भाषाकी ओर भी मेरा ध्यान गया था। श्री मॉन्टेग्युकी इच्छा भी स्पष्ट दीख पड़ती थी। लेकिन बादके अनुभवसे यह स्पष्ट हो गया कि इस सरकारके साथ सहयोग करनेका अर्थ पापमें भागी होना है जबकि असहयोग का तात्पर्य पाखण्डसे बचना, दगाबाज न बनना और अन्याय न करना है। इस राज्यमें सबके लिए समान न्याय नहीं है। कदाचित् ही किसी भारतीयको यहाँ न्याय मिलता है। गोरे और कालोंके बीच बहुत भेदभाव बरता जाता है।

हमने अपने देशमें विदेशी कपड़ेको आने दिया इससे हमारी बहनोंकी लाज लुटी, पंजाबको पेटके बल रेंगना पड़ा। तीन करोड़ व्यक्तियोंको अन्न नसीब नहीं होता। जहाँ जगन्नाथजी विराजते हैं वहाँ भी लोगोंकी पसलियाँ दिखाई पड़ती हैं ― जगन्नाथजी

  1. यह सभा लिम्बडीके महाराजाके निवास स्थानपर हुई थी।
  2. सत्येन्द्रप्रसन्न सिन्हा ( १८६४ - १९२८ ); वकील, राजनयिक और भारत सरकारके प्रथम भारतीय मन्त्री। १९२०-२१ में बिहार और उड़ीसा के गवर्नर। १९१५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके बम्बई अधिवेशनके अध्यक्ष।