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भाषण : सार्वजनिक सभा, बढवानमें


भी रूठ गये हैं। हमें विदेशी व्यापारने लूट लिया है। भारतको सचाईसे प्यार है। ऐसा कहा जाता है कि अहमदाबादमें पाखण्ड भरा हुआ है। नवलरामने[१] लिखा है कि काठियावाड़ के लोग “शहदसे भी मीठे” होते हैं। हम एक जमाने में दम्भी थे। लेकिन जब हम विवेकको हृदयंगम करेंगे तो उसका अर्थ होगा कि हम [ सरकारसे ] असहयोग कर रहे हैं।

काठियावाड़ हिन्दको अभयदान दे सकता है। मैं नहीं मानता कि काठियावाड़ भिखारी है, काठी और मियाणा-जैसी लड़ाकू जातियोंका देश भिखारी हो ही नहीं सकता। कुदरतकी सहायतासे मजबूत और साहसी प्रदेशमें गरीबी अथवा नामर्दानगी असम्भव है। काठियावाड़ चाहे तो समस्त हिन्दुस्तानको अभयदान दे सकता है। आपके मनमें अगर श्रद्धा हो तो आप अपना सर्वस्व दे सकते हैं।

स्त्रियाँ जितनी गह्नोंपर निर्भर रहती हैं अगर वे उतनी प्रभुपर निर्भर रहें तो कभी दुःखी न हों। सुदामा और श्रीकृष्णकी भूमिके बालकोंको कायर कैसे माना जा सकता है? चरखा लोगोंको खानेके लिए देगा, विधवाओंका पोषण करेगा, लेकिन लड़कीके विवाह में व्यर्थकी धूमधामके लिए पैसे नहीं देगा।

काठियावाड़को चाहिए कि वह मुझे वचन दे कि जब मेरी इच्छा हो तब मैं काठियावाड़ के नाम हुंडी लिख सकूं। काठियावाड़ चाहे तो एक वर्षमें विलायती कपड़े का सम्पूर्ण बहिष्कार कर सकता है। खादी संन्यासियोंकी पोशाक नहीं है। मैं संन्यासी नहीं हूँ। मेरे पुत्र, स्त्री, बहन सब कोई है। उनसे मैं स्नेह करता हूँ, उनकी सेवाको स्वीकार करता हूँ। मैं एक मूढ़ गृहस्थ हो सकता हूँ, लेकिन मैं संन्यासी होनेका दावा नहीं करता। खादी कुलीनताकी परिचायक है। मैं वेश्याओंसे निरन्तर कह रहा हूँ कि आप खादी पहनें। साध्वियोंसे भी कहता हूँ कि मैं खादीविहीन शरीरको मलिन समझता हूँ। सीताने रावणके भेजे सुन्दर वस्त्रोंको पत्तोंसे भी तुच्छ समझा। उसी तरह हम सबको भी विदेशी कपड़ेको खादीसे हलका मानना चाहिए।

स्त्रियोंके गलों में यह सोनेकी माला कैसी? अभी तो सूतकी अथवा तुलसीकी माला ही सुशोभित हो सकती है। एक स्थानपर एक बालाने सारेके-सारे गहने दे डाले। मैंने कहा कि तुम्हें तुम्हारे माँ-बाप डाँटेंगे। उसने कहा कि मैं स्वराज्यसे पहले दूसरे गहनोंकी माँग नहीं करूंगी। मैंने कहा कि अभी तुम्हारा विवाह होना है। उसने उत्तर दिया, “आज जब कि हिन्दुस्तानकी हालत असहाय विधवा जैसी है तब मैं अपना विवाह कैसे रचा सकती हूँ?” यह सतयुगकी झाँकी नहीं तो और क्या है?

[ गुजरातीसे ]
गुजराती, १९-६-१९२१

  1. १९ वीं शताब्दी के एक गुजराती कवि।