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९८. गुजरातका कर्त्तव्य

किसी भी कार्यको आरम्भ न करना यह बुद्धिमानी की सबसे पहली निशानी है, लेकिन जिस कार्यको आरम्भ कर दिया उसे पूरा करना अत्यन्त आवश्यक है। गुजरात [राजनीतिक] परिषद् ने नर्मदाके तटपर निर्णय किया था कि गुजरात इसी मासके अन्ततक तिलक स्वराज्य-कोषके लिए दस लाख रुपया इकट्ठा करेगा, कांग्रेसके तीन लाख सदस्य बनायेगा और एक लाख चरखे देगा। अगर परिषद्को इतना कार्य करने के सम्बन्धमें विश्वास नहीं था तो परिषद् उस प्रस्तावसे इनकार कर सकती थी। इसके विपरीत उसने प्रस्तावका स्वागत किया। परिषद् अर्थात् गुजरात-काठियावाड़से आये सदस्यगण। उन्होंने जान-बूझकर यह प्रतिज्ञा की थी कि वे जूनकी तीस तारीखसे पहले-पहल उपर्युक्त तीनों कार्योंको पूरा करेंगे। अगर यह प्रतिज्ञा पूरी नहीं होती तो हम स्वराज्य के लिए लगभग अयोग्य ठहरेंगे और फिर गुजरातकी मार्फत स्वराज्य प्राप्त करनेका प्रयत्न करना भी कठिन हो जायेगा। मैंने परिषद् में जो कहा था उसे आज भी मानता हूँ। मैंने कहा था कि यदि हिन्दुस्तानका एक भी प्रान्त सम्पूर्ण असहकार करनेके लिए तैयार हो तो स्वराज्य मिल जाये। इस प्रवृत्तिका गुण ही समकोण जैसा है । जिस तरह एक चौरस आकृतिके एक कोणके समकोण होनेपर अन्य तीन कोण भी समकोण ही होते हैं उसी तरह यदि एक प्रान्त तैयार हो जाये तो अन्य प्रान्त भी स्वयमेव तैयार हो जायेंगे। बात सिर्फ लोगोंको भयसे छुटकारा दिलानेकी है। सिंह माने जानेवाले किसी ऐसे व्यक्तिकी दुर्बलताओंको जाननेवाले पाँच-सात व्यक्ति भी अगर डर छोड़कर उससे खेलना शुरू कर दें तो दूसरे भी तुरन्त वैसा करने लगें। एकका अनुभव दूसरोंको ज्ञान प्रदान करनेके लिए काफी है। यही बात स्वराज्यपर लागू होती है। किसी एक बड़े समुदायको अपनी शक्तिका परिचय देना है। लेकिन यदि गुजरात [स्वराज्यका] ककहरा ही नहीं पढ़ सकता तो फिर वह उसकी अन्तिम परीक्षा में किस तरह उत्तीर्ण हो सकता है? परिषद्ने जो कार्यक्रम निर्धारित किया है वह स्वराज्य के ककहरेकी परीक्षा है। इस प्राथमिक परीक्षामें यदि हम उत्तीर्ण नहीं होते तो हमारे दिलोंमें अपने ही प्रति अश्रद्धा उत्पन्न होती जायेगी।

इस लेख के प्रकाशित होने तक लगभग आधा महीना बीत चुका होगा। यदि हम परिषद् में ली हुई प्रतिज्ञाको पूरा करना चाहते हैं तो सभीको अपना कार्य समझकर अपना दायित्व सँभाल लेना चाहिए। यदि असंख्य व्यक्ति यथाशक्ति दें अथवा थोड़ेसे व्यक्ति जानपर खेलकर अपना सब कुछ अर्पण कर दें तो हम अपने कार्यको पूरा कर सकेंगे।

यदि सभी अपने-अपने कर्त्तव्यका पालन करें तो हम बिना किसी मुश्किलके अपना काम पूरा कर लेंगे।

गुजरातकी दान करनेकी क्षमताको देखते हुए दस लाख पर्याप्त नहीं हैं। गुजरातने आजतक सार्वजनिक प्रवृत्तियोंमें पैसा देनेकी रुचि प्रकट नहीं की और