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नोटिस जारी करनेकी मेहरबानी भी की है। बीजापुर मुस्लिम साम्राज्यके इतिहासमें प्रसिद्ध है। वहाँ अनेक प्राचीन भवन, मस्जिदें और दरगाहें हैं। मैं सुलतान मुहम्मदका मकबरा और वहाँकी जुमा मस्जिद देखने जा सका। मुसलमान बादशाहोंने मकबरे बनाने में जितना रुपया खर्च किया है उतना रुपया संसारमें किसीने भी खर्च नहीं किया होगा। ताजमहल एक रत्नजड़ित मकबरा ही है। मुझे बताया गया कि बीजापुर के मकबरेका “गोल गुम्बज” जगत् प्रसिद्ध है। यह गुम्बज लगभग दो सौ फीट ऊँचा है। गुम्बजके अन्दर चारों ओर एक वीथी है। वहाँतक पहुँचनेके लिए डेढ़ सौ सीढ़ियाँ हैं। वीथीका व्यास सवा सौ फुट होगा। दोनों ओर खड़े हुए व्यक्ति अगर दीवारकी ओर मुँह करके धीमे स्वरमें बात कहें तो वह सुन सकते हैं। बीजापुरकी जुमा मस्जिद भी भव्य है। वहाँ मैंने हाथसे लिखी हुई, बेल-बूटोंसे सजी हुई ऐसी ‘कुरान शरीफ’ भी देखी जिसे जेबमें रखा जा सकता था।

लेकिन मुझे जिनके बारेमें लिखना है वे हैं जंग लगी तोपें और ढहते हुए किले। जो तोपें कभी बादशाहत की निशानी समझी जाती थीं, लोगोंके लिए भयका कारण थीं उन तोपोंको आज मैंने जीर्णावस्था में देखा और देखा हिन्दू-मुस्लिम बच्चोंको उनपर “घोड़ा घोड़ा” खेलते हुए। आसपास के कोटको मैंने खंडहर होते हुए देखा और मुझे कोलाबाकी तोपोंके सम्बन्धमें लिखी हुई अपनी पंक्तियाँ याद आ गई। “मेरी मान्यता है कि अगर भारत शान्तिमय असहयोग के कार्यक्रमको पूरी तरह लागू करेगा तो ब्रिटिश तोपोंमें भी जंग लग जायेगी, उनपर घास उग आयेगी और उनपर तथा भारतमें ब्रिटिश सरकार के बनाये हुए किलोंमें हमारे बच्चे गिल्ली डंडा खेलेंगे।” मेरे इस कथन-पर बहुत थोड़े लोगोंने विश्वास किया, कुछ-एकने मेरा उपहास किया है और कुछ-एकको मेरे भोलेपनपर तरस आया है। इसके बावजूद मेरी यह मान्यता दिन-प्रतिदिन दृढ़ होती जाती है। दिल्लीके लाल किलेको देखकर क्या कोई कह सकता था कि मुगल- साम्राज्य कभी नष्ट हो जायेगा? उस समय ऐसा सोचनेवाले व्यक्तिकी क्या लोगोंने हँसी नहीं उड़ाई होगी? तथापि मेरी धारणा है कि मुगल साम्राज्य के पतनकी जितनी सम्भावना थी उससे कहीं अधिक सम्भावना इस साम्राज्य के पतनकी है। लोगोंकी तीव्र अनिच्छाके सामने कोई भी साम्राज्य नहीं टिक सकता। जो डरते हैं उन्हें ही दूसरे लोग डराते हैं। हिन्दुस्तानमें मैं अनेक अपंगोंको सरेआम रास्तेमें पड़ा हुआ देखता हूँ। उन्हें कोई भी भयभीत नहीं करता, क्योंकि वे स्वयं निर्भय हो गये हैं। उनको विश्वास है कि उनका कोई कुछ बिगाड़नेवाला नहीं है। हजारों चलनेवाले लोगोंको उनकी उपस्थितिसे असुविधा होती है तो भी वे लोग उसे बरदाश्त कर लेते हैं। उसी तरह यदि हम उपर्युक्त अपंगोंकी भाँति निर्भय बन जायें तो कोलाबाकी तोपें अथवा किले हमें डराने-धमकाने के बदले डंकरहित लगेंगे।

निर्दोष टोपी

इसे लिखते-लिखते ही मैंने समाचारपत्रमें पढ़ा कि श्री कौजलगी अदालतमें सफेद टोपी पहनकर गये, इसलिए अदालतने उन्हें उस टोपीको उतारनेका आदेश दिया।