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१०२. पत्र : प्रभाशंकर पट्टणीको[१]

अहमदाबाद
१३ जून, १९२१

सुज्ञ भाई,

भावनगरसे लिखनेवालों ने मुझे खबर दी है कि आप मेरी प्रवृत्तियोंके एकदम विरुद्ध नहीं हैं। मैं चरखे और शिक्षाके सम्बन्धमें आपकी और अन्य सभी लोगोंकी सहायता की अपेक्षा रखता हूँ। यह रकम इन्हीं कार्योंके लिए दी जा रही है, इस बातका स्पष्ट रूपसे उल्लेख करते हुए आप तिलक स्वराज्य-कोषमें चन्दा दें और लोगोंसे दिलवायें।

मोहनदास के वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र ( सी० डब्ल्यू० ३१७७ ) की फोटो नकल और (एस० एन० २७७६९) तथा (जी० एन० ५८६४) से भी।

१०३. बहनों से

सत्याग्रह आश्रम
ज्येष्ठ सुदी ९, संवत् १९७७ [१४ जून, १९२१]

यह मेरी अन्तिम पत्रिका है। पत्रिकाओंका जनतापर आजतक क्या प्रभाव हुआ है, सो मैं नहीं जानता। जिस-जिस वर्गको सम्बोधित करके मैंने पत्रिका लिखी है उनमें से अगर एक वर्ग भी तदनुसार पूरी तरह चले तो जून मासके अन्ततक दस लाख रुपया अवश्य एकत्रित हो जाये।

समस्त भारतवर्ष में बहनोंने जिस जागृतिका परिचय दिया है वैसी जागृति किसी दूसरे वर्गने नहीं दिखाई है। इससे पहले महिलाओंने राष्ट्रीय सभाओंमें इतनी बड़ी संख्या में भाग नहीं लिया था; लेकिन अब वे सब स्थानोंपर हजारोंकी संख्या में आने लगी हैं। यह तो मेरे जैसे श्रद्धालुके लिए शुभ चिह्न है। यही मुझे बताता है कि अब धर्मराज्य हमारे समीप आता जा रहा है।

अगर दूसरे वर्ग भारतकी लाज न रखें तो भी भारतकी महिलाएँ उसकी लाजको अक्षुण्ण रख सकती हैं। स्त्रियोंने हमेशा धर्मकी रक्षा की है। धर्मके लिए स्त्रियोंने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये हैं। धर्मके लिए सीता-दमयन्तीने हजारों दुःख उठाये हैं।

  1. सर प्रभाशंकर दलपतराम पट्टणी (१८६२-१९३७); भावनगर रियासत के दीवान; इंडिया कौंसिलके सदस्य, १९१७-१९१९।