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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भाषण दिया था। उस सिलसिलेमें मद्राससे अराजभक्ति के आरोपका जवाब देनेके उसमें हिंसाको भड़कानेकी कोई बात लिए उनके नाम एक सम्मन आया हुआ है। नहीं है, जैसा कि उनपर लगाये गये आरोपको पढ़नेसे साफ हो जायेगा। दफा १२४- ए जिसके मातहत उनपर आरोप लगाया गया है इस प्रकार है: जो भी सम्राट्के या ब्रिटिश भारत में कानूनसे स्थापित सरकार के प्रति नफरत या हिकारत पैदा करने की कोशिश करेगा या अपरागको बढ़ावा देगा या देनेकी कोशिश करेगा, वह सजाका भागी समझा जायेगा। सम्राट्के प्रति घृणा या अराजभक्ति कोई नहीं फैलाता। श्री गिडवानीने अपने भाषण के द्वारा जिस प्रकारका अपराग फैलाया होगा, उस तरहकी अराजभक्ति तो अली बन्धु रोज ही उभारते और फैलाते रहते हैं। और इस सरकार के प्रति मुझसे ज्यादा अपराग रखने और अपराग फैलानेवाला तो दूसरा शायद ही कोई होगा। मैं तो हर भले आदमीका यह परम कर्त्तव्य मानता हूँ कि अगर वह असहयोगियोंके समान मौजूदा सरकारको एक बुराई समझता है तो इसके प्रति उसका भाव अपरागका ही होना चाहिए। उचित तो यही होता कि अली बन्धुओंपर मुकदमा न चलाने का फैसला कर चुकनेके बाद सरकारको एक हिंसाके अलावा और किसी भी मामलेके सम्बन्धमें किसीपर मुकदमा नहीं चलाना चाहिए था। मगर सरकारका मौजूदा तन्त्र जैसा है, उसमें अपने वातावरणसे रिश्ता तोड़े बिना और एक भ्रष्ट तन्त्रकी भ्रष्ट परम्पराओंकी पूरी तरह अवहेलना किये बिना इंग्लैंड के भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश (लॉर्ड चीफ ऑफ जस्टिस) भी कथनी और करनीके इस घोर अन्तरको मिटा नहीं सकते।

सताया हुआ सिन्ध

एक दोस्तने सिन्धमें दमनकारी कार्रवाइयोंका जो विस्तृत ब्यौरा भेजा है, वह इस प्रकार है:

सिन्धके कमिश्नरने तमाम मुख्तियारकारोंको एक गुप्त गश्ती पत्र भेजकर असहयोग आन्दोलनके खिलाफ जवाबी आन्दोलन शुरू करनेकी हिदायत दी है। कई जगह के मुख्तियारकार असहयोग आन्दोलनको रोकने के लिए बड़े ही विचित्र कदम उठा रहे हैं। उनमें एक तो है असहयोग-विरोधी समितियाँ बनाना, जो कि खुला और साफ तरीका है और जिससे किसीको एतराज नहीं हो सकता। लेकिन इसके साथ ही कई स्थानोंपर लोगोंसे यह भी कहा गया है कि वे असहयोग आन्दोलनके प्रचारकोंको अपने घरोंमें न ठहरायें और पंचायतोंपर जोर डाला गया है कि वे लोगोंको उनकी सभाओं और भाषणोंमें जानेसे रोकें। और वास्तवमें कहीं-कहीं ऐसा हुआ भी है कि ठहरे हुए प्रचारकोंसे मेजबानने (उदाहरणके लिए बवीनमें) घर छोड़कर चले जानेके लिए कहा गया। थरपारकर जिलेके खिपरो कस्बेकी खबर है कि बस्तीसे कुछ दूर एक भाषणकर्तापर किसी नकाब - पोशने हमला कर दिया; उसे ऊँटपर से नीचे घसीट लिया और लाठीसे पीटा, मगर रुपये-पैसेको हाथ नहीं लगाया। हमलावर उसका स्वराजी झंडा और शाल