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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


है उस तकको लेनेसे मुल्कके गरीब और जरूरतमन्द इनकार करने लगे हैं। आजके संकटपूर्ण समयका उस घटनासे ज्यादा गम्भीर प्रमाण और कुछ नहीं हो सकता, जिसका आँखों देखा हाल एक आदमीने मुझे बताया है। असमसे चले आ रहे गरीब मजदूर सचमुच भूखों मर रहे थे। उनके आगे गरमागरम भात परोसा गया। लेकिन जब उन्हें पता लगा कि यह चावल सरकारकी ओरसे दिया जा रहा है तो उन्होंने खाने से साफ इनकार कर दिया। वे डर गये कि कहीं यह उन्हें बागानोंको लौटा ले जानेकी कोई चाल न हो! लेकिन जब सेवा समितिवालों ने जनतासे माँग जाँचकर उन्हें चावल दिया तो वे मारे भूखके उसे कच्चा ही चबाने लग गये।
यह भारत में अंग्रेजी राज्यके इतिहास में एकदम नई और अमंगलकारी घटना है। वे लोग जो हमारी आँखोंके ठीक आगे होनेवाले इस इन्कलाबके बीच नहीं हैं और दफ्तरोंमें फाइलें खोले बैठे हैं उन सबके लिए समझदारीका तकाजा यही है कि वे समय रहते सचेत हो जायें। सबके फैसलेका दिन आ गया है। अब तो सिर्फ एक ही अहम सवाल है, जिसका सरकारको जवाब देना होगा; ‘आप किसके साथ हैं ― अमीरके या गरीबके, लक्ष्मीपतिके या दीनदयालुके?’

श्री एन्ड्रयूजने असमसे लौटकर वहाँकी उन दुःखद घटनाओंके बारेमें, जिनका सिलसिला अब भी समाप्त नहीं हुआ है, एक लिखित विचारपूर्ण भाषण कलकत्ता में दिया था। उनका वह भाषण आँखोंमें आँसू ला देनेवाला था। अगर पाठकोंने उसे पढ़ा है तो उन्हें ऊपरके अंशोंको पहचानते देर न लगेगी। श्री एन्ड्रयूज जो सोचते हैं वही लिखते और बोलते हैं। सत्यको वे न अपनेसे छिपाते हैं और न दूसरोंसे। वे निरन्तर मानवताकी सेवा करते रहने में अपने शरीरका भी खयाल नहीं करते। अपनी गलतियोंको वे उसी तत्परतासे माननेको तैयार रहते हैं जितनी तत्परतासे, अगर सच हुए तो, दूसरोंपर आरोप लगानेको फिर चाहे वह व्यक्ति कितने ही ऊँचे पदपर

क्यों न हो। और चूंकि वे सच्चे, दृढ़ और निडर हैं इसलिए कुछ अखबारवाले या तो उनकी निन्दा करते हैं या अवहेलना, लेकिन एन्ड्रयूज साहबके फीजी, दक्षिण आफ्रिका, पूर्व आफ्रिका, सीलोन और पंजाबके बारेमें दिये हुए वक्तव्य आज भी उतने ही सही हैं, जितने कि वे दिये जानेके समय थे। उन वक्तव्योंमें से कइयोंकी सत्यताको सम्बन्धित अधिकारियोंने मंजूर भी किया है। इनमें से हर मामलेमें गरीबों और जरूरतमंदोंकी मदद करनेमें उन्हें कामयाबी मिली है। उनपर कितना ही कीचड़ क्यों न उछाला जाये, उनकी प्रतिष्ठाको कोई आंच न आयेगी।

लेकिन ये पंक्तियाँ एन्ड्रयूजका बचाव करने के इरादेसे नहीं लिखी जा रही हैं। असम के दुःखद वाक्योंका उल्लेख करनेमें मेरा उद्देश्य अपनी आत्मापर पड़े बोझको हलका करना और उनसे सबक लेना है। कुलियोंके काम बन्द करते ही मुझे तार द्वारा उस स्थानपर पहुँचनेका निमंत्रण मिला जहां ये वाकये, जिन्होंने एक राष्ट्रीय विपत्तिका रूप धारण कर लिया है, हो रहे थे लेकिन हाथमें लिया हुआ काम