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१०६. मजिस्ट्रेटकी धाँधली

लाहौरके जिला मजिस्ट्रेटने लाहौर नगर कांग्रेस कमेटीकी सभापर पाबन्दी लगा दी। राजद्रोहात्मक सभा कानून के अन्तर्गत, सार्वजनिक सभाएँ वे सभाएँ हैं जिनमें प्रवेश के नियमों के अनुसार, प्रत्येक जनसाधारण सम्मिलित होनेकी माँग कर सकता है, बाकी सब सभाएँ असार्वजनिक और घरेलू किस्मकी होती हैं। लाहौर कांग्रेस कमेटीकी वह सभा सिर्फ कमेटी के सदस्योंके लिए ही विज्ञापित की गई थी। लेकिन मजिस्ट्रेट साहबको इससे इतमीनान नहीं हुआ। उन्होंने कमेटीके मंत्रीको तलब किया कि खुद आकर उन्हें इतमीनान करायें। लाला अमीरचन्दने स्वभावतः मजिस्ट्रेटकी ऐसी दरबारदारी करनेसे इनकार कर दिया और विनम्रतासे सूचित किया कि यह एक खास मकसद से बुलाई गई सिर्फ घरेलू किस्मकी बैठक है। मजिस्ट्रेट साहबने फिर भी उस सभापर पाबन्दी लगा ही दी। मन्त्रीने विरोध किया कि हुक्म गैर-कानूनी है, मगर साथ ही यह भी सूचित कर दिया कि फिलहाल वे इस गैर-कानूनी हुक्मको मान लेते हैं। इससे जाहिर होता है कि सरकारी अफसर असहयोगियोंको सविनय अवज्ञाके लिए मजबूर कर रहे हैं, उसके लिए चुनौती दे रहे हैं। अगर इसी तरहके कुछ और हुक्म जारी हुए तो मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि यह चुनौती मंजूर की जायेगी। अभीतक हम अपनी कमजोरीकी वजहसे ऐसे हुक्मोंको मानते रहे। अब हम ताकतकी वजहसे मान रहे हैं और हमारी यह ताकत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। देशमें जहाँ-जहाँ ऐसे हुक्म दिये गये हैं वहाँ सभी जगह सविनय अवज्ञाकी इच्छा जोर पकड़ती जा रही है। अनुकरणीय आत्मसंयम और आत्म-अनुशासनके ही कारण कार्यकर्त्ता अपने-आपको इस तरहके हुक्मों और पाबन्दियोंकी विनयपूर्वक अवज्ञा करनेसे रोके हुए हैं। लोग जितना आत्मसंयम तथा आत्म-अनुशासन दिखायेंगे उससे देशको उतना ही फायदा होगा। सविनय अवज्ञाके काबिल होनेके लिए हमें अपने भीतर इन दोनों गुणोंको अभी बहुत ज्यादा विकसित करना होगा। पूरी विनयके साथ अवज्ञा करने- का मतलब है कहीं जरा-सा भी हंगामा या किसी तरहकी हिंसा न होने पाये। अराजकताकी इसमें कोई गुंजाइश नहीं। सविनय अवज्ञा करनेवाला स्वयं आगे बढ़कर कारावासको निमन्त्रित करता है। इसलिए गिरफ्तारीपर प्रदर्शन करना गलत है। गिरफ्तारी पर तो वैसी ही खुशी मनानी चाहिए जैसी किसीकी दिली इच्छा पूरी हो जानेपर मनाई जाती है। अगर सविनय अवज्ञाको निर्धारित कानून और व्यवस्थातक ही सीमित रखनेकी हमारी पक्की तैयारी हो, और अगर हमें पूरा इतमीनान हो कि नेताओं की गिरफ्तारीपर लोग किसी तरह हिंसा उपद्रव नहीं करेंगे तो यह कल ही शुरू किया जा सकता है। असहयोगमें जो जगह अहिंसाकी है वही अवज्ञामें विनयकी है। अवज्ञा असहयोगका उग्रतम रूप है ― यह करबन्दीसे भी ज्यादा उग्र है। सविनय अवज्ञा करनेवाला आदमी स्वयं ही कानूनका मूर्तिमन्त स्वरूप हो जाता है। सविनय अवज्ञाका आचरण करनेके लिए उच्च कोटिके साहस और सदसद् विवेककी जरूरत है।