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१०७. फिर श्री पालके बारेमें

श्री पालने[१] 'इंगलिशमैन' को जो पत्र लिखा था और जिसे अखबारोंने उद्धृत किया है, उसका पूरा उत्तर देना जरूरी है। स्पष्ट है कि अनेक बातोंके बारेमें श्री पालको गलत जानकारी मिली है, जिसके कारण वे ऐसी बातें कहनेका लोभ संवरण नहीं कर सके हैं जो सही जानकारी होनेपर वे कभी न कहते।

मेरी शिमला-यात्रा और अली बन्धुओंके बारेमें जो गलतफहमी पैदा हुई है, उसके लिए सरकारी विज्ञप्ति, वाइसरायका भाषण और अखबारोंके प्रतिनिधियों द्वारा शिमला- यात्राका काल्पनिक विवरण जिम्मेदार है।

जिस समय मैं शिमला गया, मुझे इस बातका गुमान भी नहीं था कि मैं परम- श्रेष्ठसे भेंट करूँगा। मुझे मालूम था कि पण्डित मालवीयजी और श्री एन्ड्रयूज इस बात के लिए बड़े उत्सुक हैं कि मैं लॉर्ड रीडिंगसे भेंट करूँ। लेकिन शिमला मैं केवल पण्डित मालवीयजीसे मिलने गया था, कारण यह था कि चूंकि मैं बराबर दौरेपर था और उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था, इसलिए उनका मुझसे आकर मिलना मुश्किल था। यात्राओंके दौरान वे मुझे पकड़ सकने में असमर्थ थे। पंडितजीकी बातें सुननेके बाद ही मैंने वाइसराय के सचिवको यह लिखनेका[२] निश्चय किया कि यदि परमश्रेष्ठ इस आन्दोलन के बारेमें मेरे विचार जानना चाहें तो मैं सहर्ष उनसे भेंट कर सकता हूँ। उनसे मैंने भेंट की, लेकिन अली बन्धुओंकी गिरफ्तारीका निर्णय बदलवानेके लिए नहीं वरन् वाइसरायको यह बताने के लिए कि मैं असहयोगी क्यों बना। पहली और सबसे लम्बी मुलाकात में तो अली बन्धुओंके आसन्न मुकदमेका जिक्र तक नहीं आया। अली बन्धुओंका प्रश्न तो बिलकुल स्वाभाविक रूपसे अहिंसा विषयक हमारी इस चर्चाके दौरान उठा कि उसका पालन कहाँतक किया जा रहा है। जब परमश्रेष्ठने मुझे भाषणोंके कुछ उद्धरण दिखाये तो मैंने यह पाया कि उनका वह अर्थ लगाया जा सकता है जो लगानेकी कोशिश की जा रही है। इसलिए मैंने परमश्रेष्ठको बता दिया कि अली बन्धुओंसे भेंट होते ही मैं उनको यह सलाह दूंगा कि सरकार उनके मुकदमे के सम्बन्धमें चाहे कुछ करें, उन्हें स्थिति स्पष्ट करते हुए एक वक्तव्य दे देना चाहिए। ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि सरकारके अपना निर्णय बदलनेको राजी होनेपर ही वे वक्तव्य देंगे। इस वक्तव्यके आधारपर सरकारने अपना निर्णय बदल दिया, सो उसका बुद्धिमत्तापूर्ण और स्वाभाविक कार्य था। मैं यह मानता हूँ कि इससे मुझे राहत मिली है। परन्तु श्री पालकी तरह मैं यह नहीं समझता कि अली बन्धुओंकी गिरफ्तारीके फलस्वरूप खून-खराबी लाजमी थी। अली बन्धु मेरी ही तरह समझ-बूझकर अपराग फैलानेसे सम्बन्धित कानूनको निरन्तर तोड़ते आ रहे हैं, और इस तरह गिरफ्तारीको

  1. विपिनचन्द्र पाल; देखिए “टिप्पणियाँ”, १-६-१९२१।
  2. पत्र उपलब्ध नहीं है।