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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भी न्यौता देते आ रहे हैं। यदि हम देशको अपने साथ लेकर चल पाये तो जल्दी हो या देरमें, लेकिन इसी वर्ष हम ऐसी हालत अवश्य ही पैदा कर देंगे, जिसमें सरकारको या तो हमें गिरफ्तार करनेके लिए बाध्य होना पड़ेगा अथवा उसे जनताकी माँगे स्वीकार कर लेनी होंगी। अली बन्धुओंके वक्तव्यका मन्शा एक ऐसे गलत आधारपर गिरफ्तारीसे बचनेकी कोशिश है, जिसको किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता।

इसलिए जहाँ मैं अली बन्धुओंको हिंसाके लिए उकसाने के आरोपपर मुकदमेसे बचाने के लिए उत्सुक हूँ, वहाँ मैं उनपर और स्वयं अपने आपपर इस आरोपमें मुकदमा चलाये जानेका स्वागत करूँगा कि हम कानूनसे स्थापित सरकारके प्रति अपराग फैलाते हैं। हम सभीको लगा कि जो कुछ घट रहा है, उसे जानते हुए भी वक्तव्य न देना अपने लक्ष्यके प्रति अन्याय करना और दुश्मनके हाथका खिलौना बन जाना है।

श्री पालका यह विचार सही है कि जो मसले बहुत अधिक महत्त्वके नहीं हैं, मैं उनके आपसी विचार-विमर्श और समझौते द्वारा निबटारेकी आशा करता हूँ। परन्तु मैंने वाइसरायसे समझौते की शर्तोंके बारेमें चर्चा नहीं की; यह काम तो जनताके मान्य प्रतिनिधियोंके करनेका है। मैं श्री पालको यह विश्वास दिलाता हूँ कि ऐसी आशंका रखनेका कोई कारण नहीं है कि मैं लोगोंकी उपेक्षा करके अपनी मर्जी के मुताबिक किसीसे समझौता कर लूंगा। इसी तरह अगर किसी समझौतेकी शर्तोपर चर्चा हुई तो उसे भी गुप्त नहीं रखा जायेगा। हाँ, जब दो अजनबी व्यक्ति मैत्रीपूर्ण चर्चाके लिए और एक-दूसरेका दृष्टिकोण समझने के लिए आपसमें मिलते हैं, तब इस हदतक उनकी मुलाकातको गुप्त रखना ही पड़ेगा। और हम केवल एक-दूसरेका दृष्टिकोण समझने के विचारसे ही मिले थे। परन्तु इसके साथ ही, मैं यह बताकर पाठकों के मनपर से बोझा उतार देना चाहता हूँ कि उन्हें यह आशा नहीं करनी चाहिए कि इस भेंट के फलस्वरूप शीघ्र ही कोई समझौता हो सकेगा ― भले ही इसके न होनेका कारण सिर्फ यह हो कि जनता अभी इसके लिए अपने-आपको अच्छी तरह तैयार नहीं कर पाई है। इसके अलावा वाइसरायके बारेमें तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि वे दो सर्वथा भिन्न दृष्टिकोणोंके बीच सामंजस्य स्थापित करनेकी कोशिश कर रहे हैं, जो असम्भव है। वे पुरानी बोतलोंमें नई शराब नहीं भर सकते। वे खिलाफत और पंजाबके घावोंका इलाज किये बिना भारतको सुखी और सन्तुष्ट नहीं बना सकते।

श्री पालका यह कथन बिलकुल ठीक है कि यदि पंजाब और खिलाफत सम्बन्धी अन्यायोंका परिशोधन हो जाये तो स्वराज्यके लिए आन्दोलन जारी रखनेका काम मुझे अन्य नेताओंपर छोड़ देना चाहिए; इसका कारण सिर्फ इतना ही है कि इन दो बड़े प्रश्नोंके बारेमें जब भारत इस बातका पूरा एहसास करा देगा कि उसकी ताकत कितनी है तो स्वराज्य उसे माँगते ही मिल जायेगा। स्वराज्यको मैं हर अन्यायका परिशोधन कराने, डायरशाही और लॉयड जॉर्जशाहीको रोक सकनेकी जनताकी शक्तिसे अलग नहीं मानता। सर माइकेल ओ'डायरका रास्ता आतंकवादका रास्ता है और श्री लॉयड जॉर्जका विश्वासघातका। श्री पालसे मैं यही कहूँगा कि यदि हमने इन दोनों दैत्योंको पछाड़ दिया तो उसका अर्थ यही होगा कि हम अपना शासन सँभालनेके लिए तैयार