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भाषण : घाटकोपरमें


जानता और मुझे यह भी नहीं मालूम कि में उनसे कितना रुपया लेनेकी आशा कर सकता हूँ। दो पारसी व्यापारियोंने, जिनका नाम श्री बोमनजी और श्री रुस्तमजी घोरखोदू है, १,५२,००० रुपये दिये हैं, इसलिए अब मेरी आशा शेष वो समाजों, मारवाड़ी और भाटिया व्यापारियों से है। में उनको इस सभामें बैठा देख रहा हूँ। यदि आप यह मानते हों कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है तो आपका यह परम कर्तव्य है कि आप उसको प्राप्त करनेके लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दें। इस सम्बन्धमें में आपसे यह भी कहना चाहता हूँ कि यदि हम खिलाफतके प्रश्नको पूर्ण सन्तोषजनक ढंगसे हल नहीं करते तो हम गो-रक्षाकी समस्या को भी सन्तोषजनक रूपसे कभी हल न कर सकेंगे।

जो मानपत्र मुझे दिया गया है उसमें लिखा है कि घाटकोपर में बम्बईके बड़े-बड़े व्यापारी रहते हैं। यदि ये बड़े-बड़े व्यापारी चाहते तो इस सभामें मुझसे यह वादा करके मुझे यहाँ से भेजते कि ज्यादा नहीं तो कमसे कम ४० लाख रुपये तो वे मुझे देंगे ही। आपने जो उद्देश्य अपने सामने रखे हैं उन्हें पूरा करनेका ऐसा दृढ़ संकल्प कर लेना था कि किसी भी प्रकारका त्याग करने के अवसरका स्वागत करते न कि ऐसे संकटके समय आप भारतमाताकी पुकार अनसुनी कर देते। यह समय ऐसा है जब हमें बहुत-सा धन इकट्ठा करना है, ज्यादा बातें नहीं करनी हैं। मुझे इस बातका पूरा भरोसा है कि यदि शहर के अन्य वर्ग अपने कर्त्तव्यका पालन न भी करें फिर भी भाटिया और मारवाड़ी ये दो वर्ग, इस संकल्पके साथ कि हम ब्रिटिश सरकारकी गुलामी में हरगिज न रहेंगे, नियत की गई रकम मुहैया कर देंगे। इसी कारण आपको अपना धन उदारतासे देना है। हमें अगले कुछ महीनोंमें स्वराज्यकी स्थापना करनी है और उसके लिए हमें बड़े-बड़े त्याग करने होंगे। आपको विदेशोंका बना कीमती विलासिताका सामान और विलायती कपड़े छोड़ने हैं। इस शहरमें स्त्रियोंकी सभा करनेके लिए मेरे पास अतिया बेगम आई हुई हैं, किन्तु उनके साथ एक ऐसी महिला हैं जो पश्चिमी ढंगकी ठाट-बाटकी पोशाक पहने हुए हैं; इसलिए मैंने उनसे कहा है कि यदि बम्बईकी स्त्रियाँ केवल इतना ही करें कि खद्दर पहनने लगें तो में उनका बिन दामोंका गुलाम बनने को तैयार हूँ। यह समय कीमती जेवर या कीमती वस्त्र पहनने का नहीं है; आपको इन सब शान-शौकतकी चीजोंको छोड़ना है। आपको दत्त-चित्त होकर चरखके प्रचारमें लग जाना है और आपके लिए खद्दर पहनना निहायत जरूरी है। जबतक आप ऐसा न करेंगी तबतक स्त्रियोंकी समामें आनेसे क्या फायदा है? क्या आप जानती हैं कि हमारे देशके करोड़ों स्त्री-पुरुष अन्न-वस्त्र के अभाव में भूखों मर रहे हैं और अधनंगे रह रहे हैं। तब आप इन विदेशी चमक-दमककी चीजों-को, जिनका आपके मनपर इतना बड़ा प्रभाव है, काममें लानेकी निष्ठुरता कैसे कर सकती हैं? जब हमारे देशके इतने लोग कष्ट भोग रहे हैं तब हम ऐसे ऐशोआरामका जीवन कैसे बिता सकते हैं? हर स्त्रीका यह पवित्र कर्त्तव्य है कि वह खद्दर पहने।