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भाषण : घाटकोपरमें


वर्णाश्रम धर्मका सार यह है कि हम गरीबों, अन्त्यजों और दलितोंके प्रति सहानुभूति रखें। हमारा सच्चा धर्म क्या है यह 'श्रीमद्भगवद्गीता' में बताया गया है। उसमें छुआछूतको भावनाका समर्थन नहीं है। गरीबोंके प्रति प्रेम और दयाका भाव रखना कर्त्तव्य बताया गया है और जबतक हममें ये गुण प्रचुर रूपसे नहीं आते तबतक हम अपने-आपको सच्चा वैष्णव नहीं कह सकते। क्योंकि जिस धर्ममें पीड़ितों और दलितोंके प्रति प्रेम न हो वह धर्म कैसा? वह तो केवल अधर्म और धर्मका विकृत रूप है।

चरखेकी बात उठाते हुए गांधीजीने कहा: चरखेसे समस्त भारतमें नये जीवनका संचार हुआ है और वह खिलाफत के अन्यायको दूर करवानेका उपाय भी है। मैं आपसे यह नहीं कहता कि आप अस्पृश्योंके हाथका भोजन करें। आप घाटकोपरके लोग इस बातको एक ओर छोड़ दें और स्वराज्यके अन्य मार्गोंका अवलम्बन करें। चरखमें इतनी शक्ति है कि उससे खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका निराकरण हो जायेगा और साथ ही उससे हमें स्वराज्य भी मिल जायेगा। उन लोगोसे मेरा अनुरोध है कि वे अपना ध्यान कांग्रेसके कार्यक्रमपर केन्द्रित करें। वह कार्यक्रम क्या है, यह आप सभी जानते हैं।

में ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह हमें इतनी शक्ति दे जिससे हम देशके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन कर सकें और ठीक राहपर चलकर स्वराज्यके लक्ष्य तक पहुँच सकें। (भारी हर्षध्वनि) इसके बाद गांधीजीने श्रोताओंसे, जिनमें स्त्री और पुरुष सभी थे, तिलक स्वराज्य कोबके लिए यथाशक्ति धन देनेका अनुरोध किया। उन्होंने कहा: आप जो कुछ दें स्वयं सेवकोंको दें। साथ ही साथ में चाहता हूँ कि आप दान श्रद्धापूर्वक करें। मैं यह नहीं चाहता कि आप अपने देशके लिए अनिच्छासे धन दें। जिन श्रावकों और वैष्णवों ने इस कोषमें धन दिया है, वे उसे वापस लेनेके लिए सर्वथा स्वतन्त्र हैं, क्योंकि मुझे ऐसा अनिच्छापूर्वक दिया हुआ धन नहीं चाहिए; मुझे तो वही रुपया चाहिए जो श्रद्धापूर्वक दिया गया हो। जो लोग अपना रुपया वापस लेना चाहें वे खुशीसे ले सकते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १६-६-१९२१