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११०. तार : चित्तरंजन दासको

[ साबरमती
१७ जून, १९२१ या उसके पश्चात् ][१]

मोतीलालजीको तार भेज रहा हूँ।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७५७३) की फोटो-नकलसे।

१११. भाषण : बम्बई में असहयोगपर[२]

१८ जून, १९२१

“महात्मा गांधी ने कहा: पारसी जाति और हिन्दू जातिमें सदासे ही बड़ी मित्रता रहती आई है। पारसियोंने जिस देशको अपना देश बना लिया है उसके प्रति उन्होंने प्रेम और मित्रताका भाव भी व्यक्त किया है। बचपनसे ही पारसियोंसे मेरा निजी सम्बन्ध रहा है और जीवन-भर में उनके निकट सम्पर्क में आया हूँ; मैंने उनके गुणोंकी सराहना की है। में स्पष्ट रूपसे कह देना चाहता हूँ कि में यहाँ पारसी जातिकी झूठी प्रशंसा करने के उद्देश्यसे नहीं आया हूँ; मैं अपनी अन्तरात्मामें जिस बातको सच्ची मानता हूँ वही कह रहा हूँ। आवश्यकता होगी तो मैं आपके दोषोंकी आलोचना करनेमें भी नहीं हिचकूंगा। मेरे मनमें पारसियोंके प्रति अत्यधिक प्रेम और सम्मान है और मैंने जितने सार्वजनिक काम हाथमें लिये उन सबमें में उनके सम्पर्क में आया हूँ। समस्त संसारमें इतनी छोटी अन्य कोई जाति नहीं है जिसने अपनी दानशीलता और धार्मिकतासे इतना काम कर दिखाया हो। हिन्दू धर्म और पारसी धर्ममें अधिक अन्तर नहीं है, क्योंकि दोनोंमें सत्यको प्रथम और सर्वोच्च स्थान दिया गया है। मैं पूरी तरह

२०-१६

  1. यह चित्तरंजन दासके १७ जून, १९२१ के निम्नलिखित तारके उत्तरमें भेजा गया था: “पूर्वी बंगालमें कुलियोंसे सम्बन्धित हलचलोंके कारण अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के लिए बंगालके प्रतिनिधियोंका चुनाव १५ जुलाईसे पहले सम्भव नहीं, तदनुसार कार्य समितिके एक सदस्यकी हैसियत से प्रबन्ध कर रहा हूँ। यदि कांग्रेस संविधानके उन्नीसवें अनुच्छेदके बारेमें और मंजूरी जरूरी हो तो कृपया पत्रके जरिये या अन्य प्रकारसे प्राप्त कीजिए। स्वराज्य-कोष में करीब तीन लाख। ठीक-ठीक अकड़ोंके लिए कलकत्ता तार दे रहा हूँ। माधुरीपुर तार भेजिए। कृपया मोतीलाल नेहरूको सूचित कीजिए।” ― पूर्वी बंगालमें रेलवे और जहाजोंके मजदूरोंकी हड़ताल हुई थीं और सी० एफ० एन्ड्यूजके अनुरोधपर गांधीजीने भी वहाँका दौरा किया था।
  2. गांधीजीने शनिवारको दोपहर बाद केन्द्रीय पारसी संघकी परिषद्को बैठकमें भाषण दिया था। बैठकको अध्यक्षता होरमसजी अदनवालाने की थी।