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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


स्वीकार करता हूँ कि जो आन्दोलन इस समय चल रहा है उसमें भाग लेनेके लिए आपकी अन्तरात्मा जबतक गवाही न दे तबतक आपका उससे अलग रहना ही उचित होगा। और यदि चंद पारसी ही वृढ़ संकल्प होकर तथा इस उद्देश्यके औचित्य में विश्वास रखते हुए आन्दोलन में भाग लें तो मुझे पूरा सन्तोष हो। इसलिए मैं पारसियों से अनुरोध करता हूँ कि वे समस्त स्थितिपर उचित रूपसे विचार करें और दृढ़ निश्चय करके आन्दोलनमें भाग लें। श्रद्धाकी जितनी कमी हिन्दुओं और मुसलमानोंमें है उतनी ही पारसियोंमें भी है, और उनसे मेरी प्रार्थना है कि वे स्थिति के अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रकारके पहलुओं को समझनके अनन्तर ही संघर्षमें भाग लें। जब काठियावाड़ में पोलिटिकल एजेंटसे मेरा झगड़ा[१] हो गया था और जब मैंने उसके विरुद्ध कार्रवाई करनी चाही तो वे एक पारसी सज्जन, सर फीरोजशाह मेहता ही थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि ऐसे मामलेमें न्यायकी आशा करना व्यर्थ है। मैंने एक पारसीसे यह पहला पाठ पढ़ा था और तबसे मैंने अपने जीवनमें इतने अधिक अपमान सहे हैं कि मेरे खयाल से इस सभा में तफसील के साथ उनका जिक्र करना लाभदायक न होगा।

असहयोग आन्दोलन एक आध्यात्मिक आन्दोलन है; यह हमारे जीवनकी आध्यात्मिक अवस्था है। सभी धर्मोमें यह बताया गया है कि हमें बुराईसे दूर भागना चाहिए। उससे बिलकुल अलग रहना चाहिए। मैं डायरको निभानेके लिए तैयार हूँ परन्तु डायरशाहीको नहीं। में पूरी तरह मानता हूँ कि अनेक भारतीयों और पारसियोंको अंग्रेजी राज्यसे लाभ हुआ है और वे करोड़पति हो गये हैं एवं सब तरहसे सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं; किन्तु इस राज्यसे सामान्य भारतीय समाजको कोई लाभ नहीं पहुँचा है। अंग्रेजोंसे हमारा सम्बन्ध जनसाधारणके लिए बिलकुल ही लाभदायक नहीं हुआ है और इसका सबसे अच्छा प्रमाण हमें दादाभाई नौरोजीकी लिखी पुस्तकों[२] और गोखलेकी साक्षीसे मिलता है। मणिपुरके मामलेमें जब बातचीत की जा रही थी तो सर जॉन गर्स्टने ही कहा था कि समाजके प्रमुखों को समाप्त कर देना ब्रिटिश सरकारकी नीति है। मेरी आँखें इससे पहले नहीं खुलीं, यह मेरा दुर्भाग्य है। मेरा कहना यह है कि अंग्रेजी राज्यसे जहाँ कुछ लोगोंको शायद लाभ पहुँचा हो, वहाँ बहुत बड़े जनसमुदायको और अधिकांश जनताको आर्थिक या नैतिक अथवा शारीरिक वृष्टिसे जरा भी लाभ नहीं पहुँचा है। आज भारतको अवस्था जितनी खराब है उससे ज्यादा खराब पहले कभी नहीं रही। मुझे हिन्दुओं, पारसियों और मेमनोंने खानगी तौरपर कहा है कि वे मेरे आन्दोलनमें गुप्त रूपसे सहायता देनेके लिए बिलकुल तैयार हैं, किन्तु वे खुली सहायता नहीं दे सकते, क्योंकि उनके निहित स्वार्थ हैं और वे व्यापार तथा ऐसे ही अन्य कामोंमें लगे हुए हैं।

  1. गांधीजीने अपने भाई लक्ष्मीदाससे सम्बन्धित एक मामले में एजेंटसे हस्तक्षेप करनेकी प्रार्थना की थी और इसपर उस एजेंटने उन्हें अपने कमरेसे निकलवा दिया था। देखिए आत्मकथा, भाग २, अध्याय ४।
  2. इनमें मुख्य है पावर्टी ऐंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया।