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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बातें जनरल डायरने कही थीं। में आपसे वही बात कह रहा हूँ जिसे मेरा अन्त: करण सत्य बताता है, अन्य कुछ नहीं। जब अली बन्धुओंने भूल की थी तब मैंने उनका ध्यान उसकी ओर खींचा था और उन्होंने तत्काल अपना रवैया सुधार लिया था।

असहयोग आन्दोलनको सफलताकी चर्चा करते हुए श्री गांधीने कहा: लोग इस आन्दोलनकी जितनी सफलताको आशा कर रहे थे वह उससे अधिक सफल हुआ है। उससे लोगों के दिमागों में से अधिकारियोंका और कष्टोंका सब भय निकल गया है तथा देशके लिए त्याग और काम करनेसे वे अब बिलकुल नहीं डरते। लोग अपने देशके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। यद्यपि पारसी जाति संख्याको दृष्टिसे बहुत छोटी है, फिर भी उसमें दादाभाई और मेहता-जैसे लोग पैदा हुए हैं और उन्होंने इस देशकी महान् सेवा की है। पारसी अपनी श्रद्धा, दानशीलता और त्यागवृत्तिसे भारतकी बहुमूल्य सेवा कर सकते हैं। श्री मेहता बम्बईके शेर कहे जाते हैं और मुझे आशा है कि पारसी लोग ऐसा काम करेंगे जिससे वे भारतके शेर कहे जायें। पारसी दानी विचारशील हैं और धनी हैं; उनमें बड़े-बड़े व्यापारी हैं; उनमें देशके लिए अत्यधिक त्याग करनेकी क्षमता भी है। यदि वे आवश्यक त्याग करके भारतके लिए काम कर सकें तो वे सहज ही भारतके नेता बन सकते हैं। मैं तो पारसियों से बड़े-बड़े कामोंकी आशा करता हूँ।

श्री एच० पी० मोदीके प्रश्नोंके उत्तरमें महात्माजीने कहा: स्वराज्य लेनेके लिए अब हमारे पास केवल तीन महीने शेष रह गये हैं। मुझे स्वराज्य मिलनेका विश्वास है भी और नहीं भी है। मुझे विश्वास इसलिए नहीं है कि हमने बेजवाड़ामें जो कार्यक्रम स्वीकार किया था और देशके सम्मुख रखा था वह अभीतक पूरा नहीं किया गया है। लेकिन मेरा ईश्वरमें बहुत विश्वास है और मुझे निश्चय है कि भारतको स्वराज्य अवश्य मिलेगा। असहयोग आन्दोलन आरम्भ करनेका उद्देश्य देशके लोगोंकी मनो- वृत्तिको पूर्णतया बदल देना है। दुर्भाग्यका विषय है कि लोगोंने अभीतक बेजवाड़ामें रखा गया कार्यक्रम पूरा नहीं किया है और इसीलिए मुझे सितम्बर[१] के महीने में स्वराज्य मिलनेके सम्बन्धमें कभी-कभी सन्देह होने लगता है।

चरखेकी उपयोगिता के प्रश्नपर बोलते हुए गांधीजीने कहा: चरखेमें मेरा बहुत अधिक विश्वास है और मेरा खयाल है कि उसमें देशका हित करनेकी क्षमता बहुत है। खाद्य समस्या के बाद जनसाधारणके सामने तन ढॉकनेकी समस्या आती है। हम अभी जनताको पूरा कपड़ा नहीं दे सकते; इसके लिए हमें जापान, इंग्लैंड और दूसरे देशोंकी सहायता लेनी होती है। मैं यह चाहता हूँ कि भारत दूसरे देशोंकी तनिक भी सहायता लिये बिना अपने लोगोंको पूरा कपड़ा दे सके। यदि हमारे कारखाने एक छटाँक भी सूत या एक गज भी कपड़ा बाहर न भेजें तो भी वे जनसाधारणकी जरूरतके लायक कपड़ा तैयार नहीं कर सकते। देशमें लगभग ३ करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें ठीक तरहसे

  1. गांधीजीने सितम्बर १९२० में कहा था कि स्वराज्य एक वर्षमें मिल जायेगा। देखिए खण्ड १८।