पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/२७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४५
भाषण : बम्बई में असहयोगपर


न तो खाना मिलता है और न वस्त्र। यह बात मैं इस देशके अपने निजी अनुभवके आधारपर कह रहा हूँ और मैंने स्वयं उड़ीसा तथा अन्य प्रान्तों में जो कुछ देखा है केवल वही बता रहा हूँ । इन जगहों में लोग अधनंगे रहते हैं और आधा पेट खाकर जिन्दा हैं। मुझसे धनी लोग गरीबोंके लिए सदाव्रत खोलनेकी बात कहेंगे, किन्तु मैं उनसे कहता हूँ कि इस तरहकी चीजों में मेरा विश्वास नहीं है। मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक मनुष्य स्वतन्त्र हो और अपना गुजारा अपनी ही मेहनतसे करे। मैंने भंगीका काम किया है, इसलिए मुझे इन बातोंके सम्बन्धमें कुछ जानकारी है और में यह भी जानता हूँ कि मजदूरी में थोड़ी-सी बढ़ोतरी होनेका क्या अर्थ होता है। अमृतलाल ठक्करने ‘सवेंट्स ऑफ इंडिया’ नामक पत्रमें एक बहुत ही मनोरंजक लेख लिखा है। इसमें उन्होंने बताया है कि काठियावाड़ में गरीब लोगोंको चरखा कातने से कितनी मदद मिल रही है।

उन्होंने काठियावाड़ में ढेढ़ोंमें चरखेका प्रचार किया है और उससे उन लोगोंका बहुत हित हो सकता है। भारतके विशिष्ट जलवायुमें हमें अपने व्यवहारके लिए खादी ही चाहिए जो एक सुन्दर चीज है और में आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप सब लोग इसीका व्यवहार करें। जब देश-भरके भारतीय चरखा चलाना सीख लेंगे तब वे बिलकुल स्वतन्त्र, निर्भय और स्वावलम्बी हो जायेंगे। भारतीय इतने गरीब हैं कि गरीबी से मजबूर होकर बहुतेरी औरतें पत्थर तोड़ती और ऐसे ही दूसरे काम करती हैं। मैं अपने अनुभव से जानता हूँ कि इन गरीब स्त्रियोंको किस तरह अपने सतीत्व एवं शीलसे हाथ धोना पड़ता है। किन्तु यदि वे चरखा चलायेंगी तो वे अपने घरोंमें हो बनी रहकर अपनी आजीविका कमा सकेंगी। इसीलिए मैं कहता हूँ कि चरखमें स्व- तन्त्रता और पवित्रताका समावेश है।

सरकारी आंकड़ोंके अनुसार प्रत्येक भारतीयकी औसत आमदनी दो रुपये, चार आने प्रति मास है। इसमेंसे करोड़पतिको आमदनी घटा देनेपर एक आदमीकी आमदनी दो रुपये प्रति मास रह जायेगी; इतनी आमदनीसे एक साधारण आदमी अपना गुजारा कैसे कर सकता है? इसलिए यदि परिवारकी आमदनी में थोड़ी-बहुत वृद्धि हो तो उसका स्वागत किया जायेगा और उसके कष्टोंमें कुछ कमी होगी।

शिक्षाके प्रश्नपर बोलते हुए श्री गांधीने कहा: भारतमें अनिवार्य शिक्षाकी व्यवस्था करना लगभग असम्भव है, क्योंकि ऐसी शिक्षापर भारी खर्च आता है; किन्तु यदि लोग चरखा चलायेंगे तो उनके लिए अपने बच्चोंको शिक्षित करना सम्भव हो जायेगा। इस प्रकार चरखा उनके आर्थिक पुनरुत्थान, सम्पत्ति और स्वतन्त्रताका साधन बन जायेगा और सच तो यह है कि हमारा छुटकारा चरखा चलानेसे ही होगा। हमें एक करोड़ रुपये जमा करने हैं। मैं मानता हूँ कि अभीतक में उतनी राशि इकट्ठी नहीं कर पाया हूँ, किन्तु आशा है कि हो जायेगी। श्री गांधीने हाथ बनी चीजोंका प्रश्न फिर उठाते हुए कहा कि इंग्लैंडमें भी जहाँ सब लोग यन्त्रोंका उपयोग करते हैं हाथ-