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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तीन पैरे लिख मारे हैं और उससे जाहिर होता है कि उसने इसे बिलकुल उलटा समझा है। मैंने तो उसे असहयोगका अमलमें क्या स्वरूप होता है इसका पदार्थ पाठ माना था और आज भी, जब उसे लेकर इतना विवाद खड़ा हो गया है, मेरा यही खयाल बना हुआ है। यह कदम एक ध्रुवतारा है जो असहयोगकी राहसे भटकनेवाले लोगों को हमेशा रास्ता दिखाता रहेगा। विरोधियोंकी उपस्थितिमें और इस बातका खतरा उठाकर भी कि उनके आचरणको कमजोरीका लक्षण समझा जा सकता है, असहयोगियोंको निरन्तर अपनी शुद्धि करते चलना है। अपनेको सुधारनेकी प्रक्रियामें उनको इस बातका खयाल नहीं करना चाहिए कि उसकी उनको क्या कीमत चुकानी पड़ती है। सत्यके लिए सत्यके पालनका यही अर्थ होता है। तात्कालिक परिणाम चाहे कितना ही अन्धकारमय क्यों न दिखाई दे, सत्यकी खोज में लगे हुए व्यक्तिको दृढ़ता के साथ वही करते रहना चाहिए जिसे वह सत्य समझता हो। मुहम्मद साहबने यदि सत्यको ही अपना एकमात्र और परम कवच न माना होता तो कई बार उनके कदम भी डगमगा गये होते। यदि यह बात मान ली जाये कि अली बन्धुओंको यह परामर्श मैंने अपने आत्मबलके कारण दिया था और उन्होंने अपने आत्मबलके कारण उसको समझकर स्वीकार कर लिया तो यह स्पष्ट हो जायेगा, जैसे मेरे सामने बिलकुल स्पष्ट है, कि इस सफाईने इस्लाम और देशका बड़ा कल्याण किया है। इसलिए यदि ‘यंग इंडिया’ का पिछला अंक[१] भी सब शंकाओंका समाधान न कर पाया हो तो फिर यह काम समयपर ही छोड़ देना पड़ेगा।

अभिव्यक्तिकी असमर्थता

नरम दलवालोंके नाम मेरे पत्रके[२] बारेमें भी कुछ इसी प्रकारकी गलतफहमी, भले ही वह इतना महत्त्व नहीं रखती, उठ खड़ी हुई है; मैं अपने विचारोंको अकसर ठीक-ठीक अभिव्यक्त करनेमें चूक जाता हूँ, इसकी मुझे ग्लानि है। ऐसी कोई बात नहीं है कि मैं जो कुछ लिखता हूँ, सोच-समझकर और अपने तई ठीकसे नहीं लिखता। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि बिलकुल सही और साफ ढंगसे लिखूं। इसके बावजूद ‘सर्वेन्ट ऑफ इंडिया’ के ‘एक समालोचक’ के मनमें मेरे लिखनेसे यह धारणा बन गई है कि मैं धरना देने में नरम दलवालोंसे यह आशा करता हूँ कि वे असहयोग आन्दोलनकारियोंका साथ देंगे। मेरे मन में ऐसी कोई बात नहीं है। यह हो सकता है कि सहयोग करनेवाले लोगोंको धरना देनेका तरीका भोंडा और बहुत नाकाफी लगे और इसलिए वह उन्हें पसन्द न आये। लेकिन मेरा खयाल है कि वे अपने ढंगसे नशाबन्दी के काम में सहायता अवश्य पहुँचायेंगे, अर्थात् शराब की दुकानों को फौरन खत्म करा देंगे। देशके प्रति कमसे-कम इतना कर्त्तव्य तो उनका है ही। धरना देनेके आन्दोलनकी सरगर्मी दिन-दिन जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे धरना देनेवालोंपर शराबकी दुकानोंके मालिकों और उनके ग्राहकों की मेहरबानी भी बढ़ती जा रही है। मेरा खयाल है कि अहमदाबादमें

  1. देखिए “टिप्पणियाँ”, १५-६-१९२१।
  2. देखिए “पत्र: नरमदलीय भाइयोंको”, ८-६-१९२१।